शारदीय नवरात्रि 2022

इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें

शारदीय नवरात्रि 26 सोमवार, सितम्बर 2022 से शुरू हो रही है, जो कि बुधवार 5 अक्टूबर, 2022 को संपन्न होगी। नवरात्रि के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है।

शारदीय नवरात्रि दुर्गा पूजा कलश स्थापना – 26 सोमवार, सितम्बर 2022 को घटस्थापना मुहूर्त – 06:03 से 07:38 – अवधि – 01 घण्टे 34 मिनट

अभिजित मुहूर्त – 11:41 से 12:29 – अवधि – 00 घण्टे 48 मिनट। घटस्थापना मुहूर्त, द्वि-स्वभाव कन्या लग्न के दौरान है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 26 सितम्बर 2022 को 03:23 बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 27 सितम्बर, 2022 को 03:08 बजे
कन्या लग्न प्रारम्भ – 26 सितम्बर, 2022 को 06:03 बजे कन्या लग्न समाप्त – 26 सितम्बर, 2022 को 07:38 बजे

नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व: अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। नवरात्र में अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना होता है। परंम्परा है कि जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते है उन्हें जमीन पर सोना होता है।

शारदीय नवरात्रि 2022 तिथियां-

  1. सोमवार, 26 सितंबर 2022 – मां शैलपुत्री – पहला दिन – प्रतिपदा
  2. मंगलवार, 27 सितंबर 2022 – मां ब्रह्मचारिणी – दूसरा दिन- द्वितीय
  3. बुधवार, 28 सितंबर 2022 – मां चंद्रघंटा – तीसरा दिन – तृतीया
  4. गुरुवार,  29 सितंबर 2022 – मां कुष्मांडा – चौथा दिन – चतुर्थी
  5. शुक्रवार, 30 सितंबर 2022 – मां स्कंदमाता – पांचवा दिन – पंचमी
  6. शनिवार, 1 अक्टूबर 2022 – मां कात्यायनी – छठा दिन – षष्ठी
  7. रविवार, 2 अक्टूबर 2022 – मां कालरात्रि – सातवां दिन – सप्तमी
  8. सोमवार, 3 अक्टूबर 2022 – मां महागौरी – आठवां दिन – दुर्गा अष्टमी
  9. मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022 – महानवमी, – नौवां दिन – शरद नवरात्र व्रत पारण
  10. बुधवार, 5 अक्टूबर 2022 – मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन, दशमी – दशहरा

कलश स्थापना और पूजन के लिए महत्त्वपूर्ण वस्तुएं

  • मिट्टी का पात्र और जौ के ११ या २१ दाने।
  • शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमे पत्थर नहीं हो।
  • शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी , सोना, चांदी, तांबा या पीतल का कलश।
  • मोली (लाल सूत्र) अशोक या आम के 5 पत्ते कलश को ढकने के लिए मिट्टी का ढक्कन साबुत चावल एक पानी वाला नारियल।
  • पूजा में काम आने वाली सुपारी कलश में रखने के लिए सिक्के।
  • लाल कपड़ा या चुनरी,मिठाई,लाल गुलाब के फूलो की माला।

नवरात्र कलश स्थापना की विधि

महर्षि वेद व्यास से द्वारा भविष्य पुराण में बताया गया है की कलश स्थापना के लिए सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से शुद्ध किया जाना चाहिए। उसके उपरान्त एक लकड़ी का पाटे पर लाल कपडा बिछाकर उसपर थोड़े चावल गणेश भगवान को याद करते हुए रख देने चाहिए।

फिर जिस कलश को स्थापित करना है उसमे मिट्टी भर के और पानी डाल कर उसमे जौ बो देना चाहिए।

इसी कलश पर रोली से स्वास्तिक और ॐ बनाकर कलश के मुख पर मोली से रक्षा सूत्र बांध दे कलश में सुपारी, सिक्का डालकर आम या अशोक के पत्ते रख दे और फिर कलश के मुख को ढक्कन से ढक दे। ढक्कन को चावल से भर दे। पास में ही एक नारियल जिसे लाल मैया की चुनरी से लपेटकर रक्षा सूत्र से बांध देना चाहिए। इस नारियल को कलश के ढक्कन रखे और सभी देवी देवताओं का आवाहन करे। अंत में दीपक जलाकर कलश की पूजा करे। अंत में कलश पर फूल और मिठाइयां चढ़ा दे अब हर दिन नवरात्रों में इस कलश की पूजा करे।

जो कलश आप स्थापित कर रहे है वह मिट्टी, तांबा, पीतल , सोना ,या चांदी का होना चाहिए। भूल से भी लोहे या स्टील के कलश का प्रयोग नहीं करे।

नवरात्रि मै करे नवराण मंत्र की साधना

शास्त्रों मै 4 नवरात्रि का वर्णन है 2 गुप्त नवरात्रि है ओर 2 दृष्टया नवरात्रि है इस बार चेत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रि पारम्ब हो रही है।नवरात्रि एक ऐसी पल है जहाँ हम भगवती से जुड़कर उनका साणेध्य प्राप्त कर सकते है उनकी कृपा प्राप्त कर सकते है। जिस तरह से एक बालक गर्भ मै 9 महीने रहता है उसके बाद ही वो गर्भ से निकलकर जीवन मै पूर्ण उत्साह, पूर्ण निरोगता, ओर पूर्ण उमंग से जीवन जीता है ये ऊर्जा उसे माँ की गर्भ मै ही मिलती है उसी तरह से ये 9 रात्रि मै माँ की ऊर्जा माँ की सणेध्ये प्राप्त करने की है जीसेय हम भी अपना जीवन पूर्णता के साथ पूर्ण ऊर्जा से जी सके

नवराण मंत्र सभी मँत्रों मै ऊतम मंत्र है की ये स्वयमभूथ मंत्र है जिस तरह से प्रणव ॐ मंत्र स्वयमभूथ है उसी तरह ये भी स्वयमभूथ मंत्र है। बहौत से लौग पूछते है किस तरह से इस नवराण मंत्र का उचारण करना चाहये तो सबसे पहेले मै सभी कॊ बता दूँ की इस मंत्र मै आगेय मै ॐ नही लगेँगा की जैसा बोला की ये स्वय्म्भुत है वही 3 बीज मंत्र मै आखिरी मै लगेँगा ना की।

नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है वो कोई सिद्ध हो या कोई भगवान का अवतार नवराण मंत्र की साधना सभी ने की है की ये साधना सभी द्रुश्टी से पूर्णता देती है इसके कई लाभ बताये गये है शस्त्रों मै जो निम्लिक्थ है

  1. अगर आपके शादी सुधा जीवन मै उमंग नही है,आप संतान हीन है तो एक बार साधना ज़रूर करे
  2. जीवन मै सभी शत्रुऔ के नाश हेतु ये शेर्स्त साधना है चाइय वो शत्रु गुप्त हो ये प्रतेक्स शत्रु, आप प्रत्यक्ष शत्रुऔ कॊ देख सकते लीकीन उनका क्या जो आपसे मित्रता का दिखावा करके मन मै शत्रु भाव रखे हुवे है
  3. वही ये साधना पूर्ण चेतना जागरण की करती है
  4. ये साधना के प्रताप से आपके जीवन मै आने वाली सभी धन के अभाव का नाश करके आपके धन के नये नये रास्ते खोल देती है

विनियोग : ॐ अस्ये श्री नवराण मंत्रअसस्य ब्रम्हा विष्णु रुद्र ऋषिय गायत्रीविष्णुअनुषपछनदाशी, श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती देवता, ऐम बीजम ह्रीम शक्ति, क्लीम कील्कम, श्री महाकाली महालक्ष्मी महसरस्वती प्रीतिअर्थे जापे विनियोग :

वही विनियोग के बाद ऋषिन्यास, करनयश, हृदय न्यास, ओर मंत्र ध्यान रहता है

नवराण मंत्र की साधना इसकी पूर्ण अनुष्ठान 9 दिन मै करना है जो बहौत आसानी से हो जाता है वही इस साधना मै “शक्ति यंत्र” वो भी अभिमंत्रित होना बहौत ज़रूरी है की यंत्र मै ही देवता का वास होता है ओर बिना यंत्र के ये साधना मतलब अधूरी मानी जाती है

नवरात्र में क्या करना चाहिए?

यदि किसी कारण विशेष के लिए पूजा कर रहे हो तो स्वयं को श्रृंगार, मौजमजा, काम से दूर करें रखें। निश्चित समय में पूजा पाठ करें तथा निश्चित संख्या में जप करें।

जप अवश्य करें। जप के समय मुंह पूर्व या दक्षिण दिशा में हो।

पूजा के लिए लाल फूल, रोली, चंदन, फल दूर्वा, तुलसीदल व कोई प्रसाद अवश्य लें।

नवरात्र के प्रथम दिन देवी का आवाह्न करें और नियमित पूजा करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करें और इसका नियम समझ कर करें।

क्या कुछ ऐसी बाते भी हैं, जो हम इन दिनों में न करें?

  • आवश्यकता से अधिक भोजन न करें।
  • मां को भोग लगाये बना भोजन नहीं करें। प्रतिदिन गाय, मंदिर, अर्चकों तथा आठ वर्ष से छोटी बच्चियों के लिए भोजन अवश्य निकालें।
  • तामसिक भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
  • खट्टे भोजन का प्रयोग बिल्कुल नहीं करें।
  • चमड़े की चीजों का प्रयोग न करें।
  • संध्या पूजन अवश्य करें और पूजा के उपरांत भूखा नहीं रहना चाहिए।
  • विशिष्ठ गृहस्थ कर्म नहीं करना चाहिए।
  • झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  • दुर्गा सप्तशती का गलत पाठ नहीं करें।
  • माता की ज्योति को पीठ नहीं दिखाएं।
  • कलश स्थापना के उपरांत पूरे नौ दिन घर को अकेला न छोड़े।
  • बाहर के जूते-चप्पल उस स्थान से दूर रखें जहां माता तथा कलश स्थापना की हुई है।
  • तामसिक भोजन न करने वाले लोगों को घर में न आने दें।
  • माता की पूजा में आडम्बर न करें।

नवरात्र में व्रत व साधना हमें शक्ति, भक्ति, संपन्नता और ज्ञान से परिपूर्ण करती है। लेकिन आम लोग इतनी बड़ी बातें नहीं समझते कि उनकी रोजमर्रा जिंदगी में नवरात्र क्या बदलाव लाते हैं।

मानसिक बल प्राप्त करने के लिए ये 9 दिन बहुत उत्तम होते हैं। जिन लगों को शनि व राहु के कारण समस्याएं हो रही हैं, व भी अपनी पीड़ा ले मुक्ति पा सकते हैं बशर्ते आप सही उपासना रते हैं और कलश स्थापना करते हैं। झूठे मुकदमे में फंस गये हैं तो मुक्ति मिलेगी। यदि आपको महसूस होता है कि आप या आपका परिवार तंत्र से प्रभावित है तो भी सही तरीके से की गई पूजा आपको निजात दिला सकती है।

संतान वह भी उच्च कोटि की संतान प्राप्ति के लिए भी इन दिनों में की गई साधना रंग लाती है।

नवरात्रि में अखंड ज्योति जलाएं मगर पहले ध्यान रखें ये 4 बातें

नवरात्रि में माता दुर्गा के समक्ष नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। मान्यता के अनुसार माता के सामने एक-एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।

मान्यता के अनुसार मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है

दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।

अर्थात – घी युक्त दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाई ओर रखनी चाहिए।

अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक अखंड रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाडऩा हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।

-यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।

नवरात्रों में माँ दुर्गा के जो भक्त वर्ष में दो बार माँ की विधि सहित पूजा अर्चना करते हैं वो जाने अनजाने नवदुर्गा की भक्ति से नवग्रहों को स्वत: ही शांत कर लेते हैं आइये जाने – बुध – कन्या, शुक्र -स्त्री, चंदर – माता ये तीनो रूप स्त्रीलिंग होने से ‘माँ जगम्बा’ के ही माने जाते हैं और पूजन विधि तो साक्षात् नवग्रह शांति है जहाँ कुम्भ स्थापित करके खेत्री बीजी जाती है वहां ये नज़ारा साक्षात् है

ध्यान से देखे तो (घडा -बुध) (जौं – राहु) (जल – चन्द्रमा) (अखंड ज्वाला – मंगल) (लाल दुप्पटा – केतु) (माँ का वस्त्र और देसी घी-शुक्र) (काले चने – शनि) (मीठा हलवा – मंगल) (पूजन विधि और माँ का शेर – गुरु) (दिन/रात की अखंड ज्योति सेवा – सूर्य और शनि) (नारियल – राहु का सर) और अंत में कंजक पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ करने वाले पंडित जी दोनों को भेंट और दक्षिणा देना ‘बुध’ और ‘गुरु’ को प्रसन्न करना आदि आदि ये सारी विधि ऋषि मार्कण्डेय द्वारा माँ की भक्ति करते हुए समस्त संसार को प्रदान की गयी है और जो भक्त इस विधि से पूजन-अर्चन करता है उसकी जन्म पत्रिका के नवग्रह स्वयं ही माँ दुर्गा के शक्ति आशीर्वाद से शांत हो कर शुभ प्रभाव देने लग जाते हैं

नवरात्रि पर्व, काल (समय) चक्र के विभाग अनुसार पूरे एक दिन-रात में चार संधिकाल होते हैं। जिनको हम प्रात:काल, मध्यान्ह काल, सांयकाल और मध्यरात्रि काल कहते हैं। जब हमारा एक वर्ष हो जाता है, तब देव-असुरों का एक दिन-रात होता है। जिसे कि ज्योतिष शास्त्र में दिव्यकालीन अहोरात्र कहा गया है। ये दिन-रात छ:-छ: माह के होते हैं। इन्ही को हम उतरायण और दक्षिणायन के नाम से जानते हैं। यहाँ ‘अयन’ का अर्थ है—मार्ग। (उतरायण=उत्तरी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जो कि देवों का दिन और दक्षिणायन=दक्षिणी ध्रुव से संबंधित मार्ग, जिसे देवों की रात्रि कहा जाता है)

जिस प्रकार मकर और कर्क वृ्त से अयन(मार्ग) परिवर्तन होता है, उसी प्रकार मेष और तुला राशियों से उत्तर गोल तथा दक्षिण गोल का परिवर्तन होता है। एक वर्ष में दो अयन परिवर्तन की संधि और दो गोल परिवर्तन की संधियाँ होती है। कुल मिलाकर एक वर्ष में चार संधियाँ होती हैं। इनको ही नवरात्री के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

  1. प्रात:काल (गोल संधि) चैत्री नवरात्र
  2. मध्यान्ह काल (अयन संधि) आषाढी नवरात्र
  3. सांयकाल (गोल संधि) आश्विन नवरात्र
  4. मध्यरात्रि (अयन संधि) पौषी नवरात्र

उपरोक्त इन चार नवरात्रियों में गोल संधि की नवरात्रियाँ चैत्र और आश्विन मास की हैं, जो कि दिव्य अहोरात्र के प्रात:काल और सांयकाल की संधि में आती हैं—-इन्हे ही विशेष रूप से मनाया जाता है। हालाँकि बहुत से लोग हैं, जिनके द्वारा अयन संधिगत (आषाढ और पौष) मास की नवारत्रियाँ भी मनाई जाती हैं, लेकिन विशेषतय: यह समय तान्त्रिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। गृ्हस्थों के लिए गोल संधिगत नवरात्रियों का कोई विशेष महत्व नहीं है।

जिन चान्द्रमासों में नवरात्रि पर्व का विधान है, उनके क्रमश: चित्रा, पूर्वाषाढा, अश्विनी और पुष्य नक्षत्रों पर आधारित हैं। वैदिक ज्योतिष में नाक्षत्रीय गुणधर्म के प्रतीक प्रत्येक नक्षत्र का एक देवता कल्पित किया हुआ है। इस कल्पना के गर्भ में विशेष महत्व समाया हुआ है, जो कि विचार करने योग्य है।

भारतीय ज्योतिष शास्त्र कालचक्र की संधियों की अभिव्यक्ति करने में समर्थ है। प्राचीन युगदृ्ष्टा ऋषि-मुनियों नें विभिन्न तौर-तरीकों से अभिनव रूपकों में प्रकृ्ति के सूक्ष्म तत्वों को समझाने के तथा उनसे समाज को लाभान्वित करने के अपनी ओर से विशेष प्रयास किए हैं। संधिकाल में सौरमंडल के समस्त ग्रह पिण्डों की रश्मियों का प्रत्यावर्तन तथा संक्रमण पृ्थ्वी के समस्त प्राणियों को प्रभावित करता है। अत: संधिकाल में दिव्यशक्ति की आराधना, संध्या उपासना आदि करने का ये विधान बनाया गया है।

अयन, गोल तथा ऋतुओं के परिवर्तन मानव मस्तिष्क को आंदोलित करते हैं। मानव मस्तिष्क, जो कि अनन्त शक्ति स्त्रोतों का अक्षय भंडार है। उसमें जहाँ संसार के निर्माण करने की स्थिति है, वहीं संहार करने की शक्ति भी केन्द्रित है। यही कारण है कि त्रिगुणात्मक महाकाली, महासरस्वती और महादुर्गा हमारी आराध्य रही हैं।

यह पर्व रात्रि प्रधान इसलिए है कि शास्त्रों में “रात्रि रूपा यतोदेवी दिवा रूपो महेश्वर:” अर्थात दिन को शिव(पुरूष)रूप में तथा रात्रि को शक्ति(प्रकृ्ति)रूपा माना गया है। एक ही तत्व के दो स्वरूप हैं, फिर भी शिव(पुरूष)का अस्तित्व उसकी शक्ति(प्रकृ्ति) पर ही आधारित है।

सो, इस बात को समझने की जरूरत है कि अखिल पिण्ड ब्राह्मंड के समस्त संकेत के पारखी ऋषि-मुनियों नें नैसर्गिक सुअवसरों को परख कर हमें विशेष रूप से संस्कारित बनाने का प्रयास किया है। त्रिविध ताप नाश की इस पुनीत पर्व की गरिमा को समझते हुए हमें दिव्यशक्ति की आराधना, उपासना करते हुए पूर्ण मर्यादासहित(मन को विषय भोगों से दूर रख) नवरात्रि पूजन करना आवश्यक है। यह समय किसी धर्म, जाति या सम्प्रदाय विशेष से सम्बन्धित न होकर मानव मात्र के लिए कल्याणप्रद है।

  1. शैलपुत्री : ह्रीं शिवायै नम:
  2. ब्रह्मचारिणी : ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
  3. चन्द्रघंटा : ऐं श्रीं शक्तयै नम:
  4. कूष्मांडा ऐं ह्री देव्यै नम:
  5. स्कंदमाता : ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
  6. कात्यायनी : क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:
  7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नम:
  8. महागौरी : श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
  9. सिद्धिदात्री : ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नम:

देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है

  • प्रथम शैल-पुत्री
  • द्वितियं ब्रह्मचारिणि
  • तृतियं चंद्रघंटेति
  • चतुर्थ कूषमाण्डा
  • पंचम् स्कन्दमातेती
  • षष्टं कात्यानी
  • सप्तं कालरात्रेति
  • अष्टं महागौरी
  • नवमं सिद्धिदात्ररी
  1. प्रथम कलशस्थापन शैलपुत्री भोग – खीर
  2. द्वितीया ब्राह्मचारिणी भोग – खीर, गाय का घी, एवं मिश्री
  3. त्रतीया चन्द्रघंटा भोग – कैला, दूध, माखन, मिश्री
  4. चतुर्थी कुष्मांडा भोग – पोहा, नारियल, मखाना
  5. पंचमी स्कन्दमाता भोग – शहद एवं मालपुआ खिलोना
  6. षष्टी कात्यायनी भोग – शहद एवं खजूरb सुहाग सामान
  7. सप्तमी कालरात्री भोग – अंकुरीत चना एवं अंकुरित मूँग
  8. अष्टमी महागौरी भोग – नारियल,खिचड़ी,खीर
  9. नवमी सिध्दीदात्री भोग – चूड़ा दही,पेड़ा,हलवा
  10. दशमी धान का लावा

शैलपुत्री पर्वत की बेटी

वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है। पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी। एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी

दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है।

भ्रमाचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप)

दूसरी उपस्तिथि नौ दुर्गा में माँ ब्रह्माचारिणी की है। ” ब्रह्मा ” शब्द उनके लिए लिया जाता है जो कठोर भक्ति करते है और अपने दिमाग और दिल को संतुलन में रख कर भगवान को खुश करते है।

यहाँ ब्रह्मा का अर्थ है “तप”। माँ ब्रह्मचारिणी की मूर्ति बहुत ही सुन्दर है। उनके दाहिने हाथ में गुलाब और बाएं हाथ में पवित्र पानी के बर्तन (कमंडल) है। वह पूर्ण उत्साह से भरी हुई है। उन्होंने तपस्या क्यों की उसपर एक कहानी है

पार्वती हिमवान की बेटी थी। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ खेल में व्यस्त थी नारद मुनि उनके पास आये और भविष्यवाणी की “तुम्हरी शादी एक नग्न भयानक भोलेनाथ से होगी और उन्होंने उसे सती की कहानी भी सुनाई। नारद मुनि ने उनसे यह भी कहा उन्हें भोलेनाथ के लिए कठोर तपस्या भी करनी पढ़ेगी। इसीलिए माँ पार्वती ने अपनी माँ मेनका से कहा की वह शम्भू (भोलेनाथ ) से ही शादी करेगी नहीं तोह वह अविवाहित रहेगी। यह बोलकर वह जंगल में तपस्या निरीक्षण करने के लिए चली गयी। इसीलिए उन्हें तपचारिणी ब्रह्मचारिणी कहा जाता है।

चंद्रघंटा (माँ का गुस्से का रूप)

तीसरी शक्ति का नाम है चंद्रघंटा जिनके सर पर आधा चन्द्र (चाँद ) और बजती घंटी है। वह शेर पर बैठी संगर्ष के लिए तैयार रहती है। उनके माथे में एक आधा परिपत्र चाँद ( चंद्र ) है। वह आकर्षक और चमकदार है। वह ३ आँखों और दस हाथों में दस हतियार पकडे रहती है और उनका रंग गोल्डन है। वह हिम्मत की अभूतपूर्व छवि है। उनकी घंटी की भयानक ध्वनि सभी राक्षसों और प्रतिद्वंद्वियों को डरा देती है।

कुष्मांडा (माँ का ख़ुशी भरा रूप)

माँ के चौथे रूप का नाम है कुष्मांडा। ” कु” मतलब थोड़ा “शं ” मतलब गरम “अंडा ” मतलब अंडा। यहाँ अंडा का मतलब है ब्रह्मांडीय अंडा। वह ब्रह्मांड की निर्माता के रूप में जानी जाती है जो उनके प्रकाश के फैलने से निर्माण होता है। वह सूर्य की तरह सभी दस दिशाओं में चमकती रहती है। उनके पास आठ हाथ है,साथ प्रकार के हतियार उनके हाथ में चमकते रहते है। उनके दाहिने हाथ में माला होती है और वह शेर की सवारी करती है।

स्कंदमाता (माँ के आशीर्वाद का रूप)

देवी दुर्गा का पांचवा रूप है ” स्कंद माता “, हिमालय की पुत्री, उन्होंने भगवान शिव के साथ शादी कर ली थी। उनका एक बेटा था जिसका नाम “स्कन्दा ” था स्कन्दा देवताओं की सेना का प्रमुख था। स्कंदमाता आग की देवी है। स्कन्दा उनकी गोद में बैठा रहता है। उनकी तीन आँख और चार हाथ है। वह सफ़ेद रंग की है। वह कमल पैर बैठी रहती है और उनके दोनों हाथों में कमल रहता है।

कात्यायनी (माँ दुर्गा की बेटी जैसी)

माँ दुर्गा का छठा रूप है कात्यायनी। एक बार एक महान संत जिनका नाम कता था, जो अपने समय में बहुत प्रसिद्ध थे,उन्होंने देवी माँ की कृपा प्राप्त करने के लिए लंबे समय तक तपस्या करनी पढ़ी,उन्होंने एक देवी के रूप में एक बेटी की आशा व्यक्त की थी। उनकी इच्छा के अनुसार माँ ने उनकी इच्छा को पूरा किया और माँ कात्यानी का जन्म कता के पास हुआ माँ दुर्गा के रूप में।

कालरात्रि (माँ का भयंकर रूप)

माँ दुर्गा का सातवाँ रूप है कालरात्रि। वह काली रात की तरह है, उनके बाल बिखरे होते है, वह चमकीले भूषण पहनती है। उनकी तीन उज्जवल ऑंखें है,हजारो आग की लपटे निकलती है जब वह सांस लेती है। वह शावा (मृत शरीर ) पे सावरी करती है,उनके दाहिने हाथ में उस्तरा तेज तलवार है। उनका निचला हाथ आशीर्वाद के लिए है। । जलती हुई मशाल ( मशाल ) उसके बाएं हाथ में है और उनके निचले बाएं हाथ में वह उनके भक्तों को निडर बनाती है। उन्हें “शुभकुमारी” भी कहा जाता है जिसका मतलब है जो हमेश अच्छा करती है।

महागौरी (माँ पार्वती का रूप और पवित्रता का स्वरुप)

आठवीं दुर्गा ” महा गौरी है। ” वह एक शंख, चंद्रमा और जैस्मीन के रूप सी सफेद है, वह आठ साल की है,उनके गहने और वस्त्र सफ़ेद और साफ़ होते है। उनकी तीन आँखें है,उनकी सवारी बैल है,उनके चार हाथ है। उनके निचले बाय हाथ की मुद्रा निडर है,ऊपर के बाएं हाथ में ” त्रिशूल ” है ऊपर के दाहिने हाथ डफ है और निचला दाहिना हाथ आशीर्वाद शैली में है। वह शांत और शांतिपूर्ण है और शांतिपूर्ण शैली में मौजूद है। यह कहा जाता है जब माँ गौरी का शरीर गन्दा हो गया था धुल के वजह से और पृत्वी भी गन्दी हो गयी थी जब भगवान शिव ने गंगा के जल से उसे साफ़ किया था। तब उनका शरीर बिजली की तरह उज्ज्वल बन गया।इसीलिए उन्हें महागौरी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है जो भी महा गौरी की पूजा करता है उसके वर्तमान,अतीत और भविष्य के पाप धुल जाते है।

सिद्धिदात्री (माँ का ज्ञानी रूप)

माँ का नौवा रूप है ” सिद्धिदात्री “,आठ सिद्धिः है,जो है अनिमा,महिमा,गरिमा,लघिमा,प्राप्ति,प्राकाम्य,लिषित्वा और वशित्व। माँ शक्ति यह सभी सिद्धिः देती है। उनके पास कई अदबुध शक्तिया है,यह कहा जाता है “देवीपुराण” में भगवान शिव को यह सब सिद्धिः मिली है महाशक्ति की पूजा करने से। उनकी कृतज्ञता के साथ शिव का आधा शरीर देवी का बन गया था और वह ” अर्धनारीश्वर ” के नाम से प्रसिद्ध हो गए। माँ सिद्धिदात्री की सवारी शेर है,उनके चार हाथ है और वह प्रसन्न लगती है। दुर्गा का यह रूप सबसे अच्छा धार्मिक संपत्ति प्राप्त करने के लिए सभी देवताओं, ऋषियों मुनीस, सिद्ध, योगियों, संतों और श्रद्धालुओं के द्वारा पूजा जाता है।

दुर्गा सप्तशती के चमत्कारी मंत्र

  1. आपत्त्ति से निकलने के लिए –
    शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे। सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते ॥
  2. भय का नाश करने के लिए –
    सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिमन्विते। भये भ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमो स्तु ते ॥
  3. जीवन के पापो को नाश करने के लिये।
    हिनस्ति दैत्येजंसि स्वनेनापूर्य या जगत्। सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्यो नः सुतानिव ॥
  4. बीमारी महामारी से बचाव के लिए –
    रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभिष्टान्।
    त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥
  5. पुत्र रत्न प्राप्त करने के लिए –
    देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते। देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः ॥
  6. इच्छित फल प्राप्ति –
    एवं देव्या वरं लब्ध्वा सुरथः क्षत्रियर्षभः
  7. महामारी के नाश के लिए –
    जयन्ती मड्गला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमो स्तु ते ॥
  8. शक्ति और बल प्राप्ति के लिये –
    सृष्टि स्तिथि विनाशानां शक्तिभूते सनातनि। गुणाश्रेय गुणमये नारायणि नमो स्तु ते ॥
  9. इच्छित पति प्राप्ति के लिये –
    ॐ कात्यायनि महामाये महायेगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुते देवि पतिं मे कुरु ते नमः ॥
  10. इच्छित पत्नी प्राप्ति के लिये –
    पत्नीं मनोरामां देहि मनोववृत्तानुसारिणीम्।
    तारिणीं दुर्गसंसार-सागरस्य कुलोभ्दवाम् ॥

नवरात्रि में राशि अनुसार पूजा

नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की तरह ही पूजा करनी चाहिए। नौ दिनों के उपवास का संकल्प लेते हुए प्रतिप्रदा यानि पहले दिन घटस्थापना करनी चाहिए। घटस्थापना के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए। अष्टमी या नवमी के दिन कन्या पूजन के साथ नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

मेष राशि

मेष राशि के जातक शक्ति उपासना के लिए द्वितीय महाविद्या तारा की साधना करें। ज्योतिष के अनुसार इस महाविद्या का स्वभाव मंगल की तरह उग्र है। मेष राशि वाले महाविद्या की साधना के लिए इस मंत्र का जप करें।

मंत्र – ह्रीं स्त्रीं हूं फट्।

वृषभ राशि

वृषभ राशि वाले धन और सिद्धि प्राप्त करने के लिए श्री विद्या यानि षोडषी देवी की साधना करें और इस मंत्र का जप करें।

मंत्र – ऐं क्लीं सौ:।

मिथुन राशि

मिथुन राशि अपना गृहस्थ जीवन सुखी बनाने के लिए मिथुन राशि वाले भुवनेश्वरी देवी की साधना करें। साधना मंत्र इस प्रकार है।

मंत्र – ऐं ह्रीं।

कर्क राशि

इस नवरात्रि पर कर्क राशि वाले कमला देवी का पूजन करें। इनकी पूजा से धन व सुख मिलता है। नीचे लिखे मंत्र का जप करें।

मंत्र – ॐ श्रीं।

सिह राशि

ज्योतिष के अनुसार सिंह राशि वालों को मां बगलामुखी की आराधना करना चाहिए। जिससे शत्रुओं पर विजय मिलती है।

मंत्र – ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:।

कन्या राशि

कन्या राशि आप चतुर्थ महाविद्या भुवनेश्वरी देवी की साधना करें आपको निश्चित ही सफलता मिलेगी।

मंत्र – ऐं ह्रीं ऐं

तुला राशि  

तुला राशि वालों को सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए षोडषी देवी की साधना करनी चाहिए।

मंत्र – ऐं क्लीं सौ:।

वृश्चिक राशि

वृश्चिक राशि वाले तारा देवी की साधना करें। इससे आपको शासकीय कार्यों में सफलता मिलेगी।

मंत्र – श्रीं ह्रीं स्त्रीं हूं फट्।

धनु राशि

धन और यश पाने के लिए धनु राशि वाले कमला देवी के इस मंत्र का जप करें।

मंत्र – श्रीं।

मकर राशि  

मकर राशि के जातक अपनी राशि के अनुसार मां काली की उपासना करें।

मंत्र – क्रीं कालीकाये नम:।

कुंभ राशि

कुंभ राशि वाले भी काली की उपासना करें इससे उनके शत्रुओं का नाश होगा।

मंत्र – क्रीं कालीकाये नम:।

मीन राशि

मीन राशि के जातक सुख समृद्धि के लिए कमला देवी की उपासना करें।

मंत्र – श्री कमलाये नम:।

लिखने कुछ गलती हो तो अज्ञानी समझकर क्षमा करे।

Tag Words – Shardiya Navratri, Shardiya Navratri 2022, Shardiya Navratri Dates, Navratri Kab hai, Navratri ki tithi, Navratri Pooja, Navratri Staphana. Shardiya Navratri Muhurat

शारदीय नवरात्रि दुर्गा पूजा कलश स्थापना कब करना है?

सोमवार, 26 सितम्बर, 2022 को घटस्थापना मुहूर्त – 06:03 से 07:38
अवधि – 01 घण्टे 34 मिनट
अभिजित मुहूर्त – 11:41 से 12:29
अवधि – 00 घण्टे 48 मिनट

महा अष्टमी 2022 कब है?

इस साल महाअष्टमी 3 अक्टूबर (सोमवार) को है।

महानवमी 2022 कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल महानवमी 4 अक्टूबर (मंगलवार) को है।

दशहरा 2022 कब है?

इस साल दशहरा का त्योहार 5 अक्टूबर (बुधवार) को मनाया जाएगा।

शारदीय नवरात्रि दुर्गा पूजा मुहूर्त कब है?

घटस्थापना मुहूर्त – 06:03 से 07:38
अवधि – 01 घण्टे 34 मिनट
अभिजित मुहूर्त – 11:41 से 12:29
अवधि – 00 घण्टे 48 मिनट

आप हमसे हमारे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते है।
Facebook – @kotidevidevta
Youtube – @kotidevidevta
Instagram – @kotidevidevta
Twitter – @kotidevidevta

नवग्रह के रत्न और रुद्राक्ष से जुड़े सवाल पूछने के लिए हमसे संपर्क करें यहाँ क्लिक करें

अपनी जन्म कुंडली से जाने आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें।

नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Gems For Everyone पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

इसे अपने दोस्तों के साथ साझा करें
Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Owner at Gems For Everyone. Gemologist and Astrologer.

Articles: 16