सावन मास 2023 संपूर्ण जानकारी

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सावन महीना – सावन महीना मंगलवार 04 जुलाई 2023 से

सावन महीने की शुरूवात मंगलवार 04 जुलाई 2023 से हो रही है। शिवपुराण के अनुसार, सावन का महीना बेहद खास माना जाता है, इस वर्ष सावन का महीना 59 दिनों का है। 19 वर्ष के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है। सावन में अधिकमास होने के कारण 8 सावन सोमवार व्रत और 9 मंगला गौरी व्रत हैं। सावन में अधिकमास का प्रारंभ 18 जुलाई दिन मंगलवार से हो रहा है और इसका समापन बुधवार, 16 अगस्त दिन को होगा।

सावन मंगलवार, 04 जुलाई 2023 से शुरू होकर गुरुवार, 31 अगस्त 2023 को समाप्त होगा।
सावन महीना 2023 में कब-कब सावन सोमवार व्रत और मंगला गौरी व्रत हैं
सावन महीना और अधिकमास 2023 की महत्वपूर्ण दिन और तारीख
सावन महीना का प्रारंभ: मंगलवार 4 जुलाई, 2023
सावन महीना का समापन: गुरुवार 31 अगस्त, 2023
सावन महीना अधिकमास का प्रारंभ: मंगलवार 18 जुलाई, 2023
सावन महीना अधिकमास का समापन: बुधवार 16 अगस्त, 2023
सावन 2023 में 8 सावन सोमवार व्रत
इस वर्ष सावन का पहला सोमवार व्रत 10 जुलाई 2023 को है और
अंतिम सावन सोमवार व्रत 28 अगस्त 2023 को है।

इस वर्ष शिव भक्तों को भगवान भोलेनाथ की आराधना के लिए 8 सावन सोमवार व्रत करने को मिलेंगे। इसमें सावन के 4 और अधिकमास के 4 सोमवार व्रत होंगे।

Saavan 2023 Somwar Date

जानते हैं कि सावन सोमवार व्रत कब-कब हैं
सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई 2023 को है
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई 2023 को है
सावन अधिकमास का पहला सोमवार: 24 जुलाई 2023 को है
सावन अधिकमास का दूसरा सोमवार: 31 जुलाई 2023 को है
सावन अधिकमास का तीसरा सोमवार: 7 अगस्त 2023 को है
सावन अधिकमास का चौथा सोमवार: 14 अगस्त 2023 को है
सावन का तीसरा सोमवार: 21 अगस्त 2023 को है
सावन का चौथा सोमवार: 28 अगस्त 2023 को है

2023 सावन के पावन महीने की प्रमुख तिथियां
मौना पंचमी – शुक्रवार, 7 जुलाई 2023
शुक्र प्रदोष व्रत – शुक्रवार, 14 जुलाई 2023 शुक्रवार
सावन शिवरात्रि – शनिवार, 15 जुलाई 2023
सावन अमावस्या – सोमवार, 17 जुलाई 2023
रवि प्रदोष व्रत – रविवार, 30 जुलाई 2023
रवि प्रदोष व्रत (अधिकमास) – रविवार, 13 अगस्त 2023 रविवार
मासिक शिवरात्रि (अधिकमास) – सोमवार, 14 अगस्त 2023
नाग पंचमी – सोमवार, 21 अगस्त 2023
सोम प्रदोष व्रत – सोमवार, 28 अगस्त 2023 सोमवार
सावन पूर्णिमा – गुरुवार, 31 अगस्त 2023

Saavan 2023 Important Date

महादेव को प्रिय सावन

सावन माह के बारे में एक पौराणिक कथा है कि- “जब सनत कुमारों ने भगवान शिव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो भगवान भोलेनाथ ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और शिव को प्रसन्न कर उनसे विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

इसके अतिरिक्त एक अन्य कथा के अनुसार, मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव की कृपा प्राप्त की थी, जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हो गए थे।

भगवान शिव को सावन का महीना प्रिय होने का अन्य कारण यह भी है कि भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत अर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था। माना जाता है कि प्रत्येक वर्ष सावन माह में भगवान शिव अपनी ससुराल आते हैं। भू-लोक वासियों के लिए शिव कृपा पाने का यह उत्तम समय होता है।

पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इसी सावन मास में समुद्र मंथन किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो हलाहल विष निकला, उसे भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि की रक्षा की; लेकिन विषपान से महादेव का कंठ नीलवर्ण हो गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने का ख़ास महत्व है। यही वजह है कि सावन मास में भोले को जल चढ़ाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। ‘शिवपुराण’ में उल्लेख है कि भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इसलिए जल से उनकी अभिषेक के रूप में अराधना का उत्तमोत्तम फल है, जिसमें कोई संशय नहीं है।

शास्त्रों में वर्णित है कि सावन महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। इसलिए ये समय भक्तों, साधु-संतों सभी के लिए अमूल्य होता है। यह चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है, जो एक प्रकार का पौराणिक व्रत है, जिसे ‘चौमासा’ भी कहा जाता है; तत्पश्चात सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण करते हैं। इसलिए सावन के प्रधान देवता भगवान शिव बन जाते हैं।

शिव की पूजा

सावन मास में भगवान शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों संग करनी चाहिए। इस माह में भगवान शिव के ‘रुद्राभिषेक’ का विशेष महत्त्व है। इसलिए इस मास में प्रत्येक दिन ‘रुद्राभिषेक’ किया जा सकता है, जबकि अन्य माह में शिववास का मुहूर्त देखना पड़ता है। भगवान शिव के रुद्राभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रूप में चढा़या जाता है।

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शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है। कहा जाता है कि ‘आक’ का एक फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है। हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्व पत्र से दान का पुण्य मिल जाता है। हज़ार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं। हज़ार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हज़ार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हज़ार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हज़ार शमी के पत्तों के बराकर एक नीलकमल, हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हज़ार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्य देने वाला होता है।

बेलपत्र

भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका उन्हें ‘बेलपत्र’ अर्पित करना है। बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्त्व है। इस कथा के अनुसार- “भील नाम का एक डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था, वह बेल का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। जो पत्ते वह डाकू तोडकर नीचे फेंख रहा था, वह अनजाने में शिवलिंग पर ही गिर रहे थे। लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा। उस दिन से बिल्व-पत्र का महत्ता और बढ़ गया।

सावन सोमवार का महत्त्व

सावन मास के प्रत्येक सोमवार को शिव के निमित्त व्रत किए जाते हैं। इस मास में शिव जी की पूजा का विशेष विधान हैं। कुछ भक्त तो पूरे मास ही भगवान शिव की पूजा-आराधना और व्रत करते हैं। अधिकांश व्यक्ति केवल सावन मास में पड़ने वाले सोमवार का ही व्रत करते हैं। सावन मास के सोमवारों में शिव के व्रतों, पूजा और शिव जी की आरती का विशेष महत्त्व है। शिव के ये व्रत शुभदायी और फलदायी होते हैं। इन व्रतों को करने वाले सभी भक्तों से भगवान शिव बहुत प्रसन्न होते हैं। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं। व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर ‘शिव पंचाक्षर मन्त्र’ का जप करते हुए पूजन करना चाहिए।

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सावन के महीने में सोमवार महत्वपूर्ण होता है। सोमवार का अंक 2 होता है, जो चन्द्रमा का प्रतिनिधित्व करता है। चन्द्रमा मन का संकेतक है और वह भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान है। ‘चंद्रमा मनसो जात:’ यानी ‘चंद्रमा मन का मालिक है’ और उसके नियंत्रण और नियमण में उसका अहम योगदान है। यानी भगवान शंकर मस्तक पर चंद्रमा को नियंत्रित कर उक्त साधक या भक्त के मन को एकाग्रचित कर उसे अविद्या रूपी माया के मोहपाश से मुक्त कर देते हैं। भगवान शंकर की कृपा से भक्त त्रिगुणातीत भाव को प्राप्त करता है और यही उसके जन्म-मरण से मुक्ति का मुख्य आधार सिद्ध होता है।

काँवर

ऐसी मान्यता है कि भारत की पवित्र नदियों के जल से अभिषेक किए जाने से शिव प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। ‘काँवर’ संस्कृत भाषा के शब्द ‘कांवांरथी’ से बना है। यह एक प्रकार की बहंगी है, जो बाँस की फट्टी से बनाई जाती है। ‘काँवर’ तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप-दीप की खुशबू, मुख में ‘बोल बम’ का नारा, मन में ‘बाबा एक सहारा।’ माना जाता है कि पहला ‘काँवरिया’ रावण था। श्रीराम ने भी भगवान शिव को कांवर चढ़ाई थी।

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हरियाली तीज

सावन का महीना प्रेम और उत्साह का महीना माना जाता है। इस महीने में नई-नवेली दुल्हन अपने मायके जाकर झूला झूलती हैं और सखियों से अपने पिया और उनके प्रेम की बातें करती है। प्रेम के धागे को मजबूत करने के लिए इस महीने में कई त्योहार मनाये जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार है- ‘हरियाली तीज’। यह त्योहार हर साल सावन माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस त्योहार के विषय में मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी।

इससे प्रसन्न होकर शिव ने ‘हरियाली तीज’ के दिन ही पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस त्योहार के विषय में यह मान्यता भी है कि इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है।

कुंवारी कन्याओं को इस व्रत से मनचाहा जीवन साथी मिलता है। हरियाली तीज में हरी चूड़ियां, हरा वस्त्र और मेंहदी का विशेष महत्व है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती हैं। इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। माना जाता है कि मेंहदी बुरी भावना को नियंत्रित करती है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है। सावन में पड़ने वाली फुहारों से प्रकृति में हरियाली छा जाती है। सुहागन स्त्रियां प्रकृति की इसी हरियाली को अपने ऊपर समेट लेती हैं। इस मौके पर नई-नवेली दुल्हन को सास उपहार भेजकर आशीर्वाद देती है। कुल मिलाकर इस त्योहार का आशय यह है कि सावन की फुहारों की तरह सुहागनें प्रेम की फुहारों से अपने परिवार को खुशहाली प्रदान करेंगी और वंश को आगे बढ़ाएँगी।

वर्षा का मौसम

सावन के महीने में सबसे अधिक बारिश होती है, जो शिव के गर्म शरीर को ठंडक प्रदान करती है। भगवान शंकर ने स्वयं सनतकुमारों को सावन महीने की महिमा बताई है कि मेरे तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्रमा और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है, जो ऊष्मा देता है, जबकि चंद्रमा ठंडा है, जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से झमाझम बारिस होती है, जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोलेनाथ को ठंडक व सुकून मिलता है। इसलिए शिव का सावन से इतना गहरा लगाव है।

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सावन और साधना

सावन और साधना के बीच चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक अहम कड़ी है, जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति असंभव है। साधक की साधना जब शुरू होती है, तब मन एक विकराल बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। उसे नियंत्रित करना सहज नहीं होता। लिहाजा मन को ही साधने में साधक को लंबा और धैर्य का सफर तय करना होता है। इसलिए कहा गया है कि मन ही मोक्ष और बंधन का कारण है। अर्थात मन से ही मुक्ति है और मन ही बंधन का कारण है। भगवान शंकर ने मस्तक में ही चंद्रमा को दृढ़ कर रखा है, इसीलिए साधक की साधना बिना किसी बाधा के पूर्ण होती है।

सावन के पावन महीने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए 12 राशियों के अनुसार जातक कौनसा जलाभिषेक करें

  • मेष राशि के जातक गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करने परे सर्वकार्य सिद्ध होंगे
  • वृषभ राशि के जातक धन प्राप्ति के लिए जल में अक्षत मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें
  • मिथुन राशि के जातक गन्ने के रस से शिव का अभिषेक करने पर सौभाग्य में वृद्धि होगी.
  • कर्क राशि के जातक शक्कर मिश्रित दूध से अभिषेक करने पर संतान सुख प्राप्त होगा.
  • सिंह राशि के जातक जल में गुलाब का फूल डालकर अभिषेक करने से आरोग्य का वरदान मिलेगा.
  • कन्या राशि के जातक शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए शिव पर गन्ने का रस चढ़ाएं.
  • तुला राशि के जातक पंचामृत से भोलेनाथ का अभिषेक करें,इससे आर्थिक तंगी दूर होती है
  • वृश्चिक राशि के जातक ग्रहों के अशुभ प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए घी से शंकर जी का अभिषेक करें.
  • धनु राशि के जातक वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए शहद से महादेव का अभिषेक करना चाहिए.
  • मकर राशि के जातक व्यापार या नौकरी में परेशानी आ रही है तो गंगाजल या इत्र शिव जी को चढ़ाएं. जल्द शुभ परिणाम मिलेंगे
  • कुंभ राशि के जातक जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाने के लिए गंगाजल से भगवान भोलेनाथ का रुद्राभिषेक करना उत्तम माना गया है.
  • मीन राशि के जातक दूध में भांग और गन्ने का रस मिलाकर शिव का अभिषेक करें, इससे आय के नए अवसर प्राप्त होंगे.

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2023 में सावन का महीने कब से है

वर्ष 2023 में सावन का महीना मंगलवार, 04 जुलाई 2023 से गुरुवार 31 अगस्त, 2023 तक है।

2023 में सावन महीना कितने दिनों का है

सावन का पावन पर्व इस वर्ष 59 दिनों का है।

2023 में किस कारन से सावन का महीना 59 दिनों का है

सावन में अधिकमास का प्रारंभ 18 जुलाई दिन मंगलवार से हो रहा है और इसका समापन बुधवार, 16 अगस्त दिन को होगा। 19 वर्ष के बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है।

2023 में सावन महीना में कितने सोमवार आ रहे है

इस वर्ष 2023 में 8 सावन सोमवार आ रहे है। सावन में अधिकमास होने के कारण 8 सावन सोमवार व्रत और 9 मंगला गौरी व्रत हैं।

2023 में सावन में अधिकमास का प्रारंभ कब से है

सावन में अधिकमास का प्रारंभ मंगलवार, 18 जुलाई से हो रहा है

2023 में सावन में अधिकमास का समापन कब है

सावन में अधिकमास का समापन बुधवार, 16 अगस्त को हो रहा है

2023 में सावन का महीना कब से शुरू हो रहा है

वर्ष 2023 में सावन का महीना मंगलवार, 04 जुलाई 2023 से शुरू हो रहा है।

2023 में सावन का महीना कब समाप्त होगा

वर्ष 2023 में सावन का महीना गुरुवार, 31 अगस्त 2023 को समाप्त हो रहा है।

2023 में सावन का पहला सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई 2023 को है

2023 में सावन का दूसरा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई 2023 को है

2023 में सावन अधिकमास का पहला सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन अधिकमास का पहला सोमवार: 24 जुलाई 2023 को है

2023 में सावन अधिकमास का दूसरा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन अधिकमास का दूसरा सोमवार: 31 जुलाई 2023 को है

2023 में सावन अधिकमास का तीसरा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन अधिकमास का तीसरा सोमवार: 7 अगस्त 2023 को है

2023 में सावन अधिकमास का चौथा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन अधिकमास का चौथा सोमवार: 14 अगस्त 2023 को है

2023 में सावन का तीसरा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन का तीसरा सोमवार: 21 अगस्त 2023 को है

2023 में सावन का चौथा सोमवार कब है

वर्ष 2023 में सावन का चौथा सोमवार: 28 अगस्त 2023 को है

सावन के महीने में मेष राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

मेष राशि के जातक गंगाजल से शिव का जलाभिषेक करने परे सर्वकार्य सिद्ध होंगे

सावन के महीने में वृषभ राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

वृषभ राशि के जातक धन प्राप्ति के लिए जल में अक्षत मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें

सावन के महीने में मिथुन राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

मिथुन राशि के जातक गन्ने के रस से शिव का अभिषेक करने पर सौभाग्य में वृद्धि होगी.

सावन के महीने में कर्क राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

कर्क राशि के जातक शक्कर मिश्रित दूध से अभिषेक करने पर संतान सुख प्राप्त होगा.

सावन के महीने में सिंह राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

सिंह राशि के जातक जल में गुलाब का फूल डालकर अभिषेक करने से आरोग्य का वरदान मिलेगा.

सावन के महीने में कन्या राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

कन्या राशि के जातक शत्रु बाधा से मुक्ति के लिए शिव पर गन्ने का रस चढ़ाएं.

सावन के महीने में तुला राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

तुला राशि के जातक पंचामृत से भोलेनाथ का अभिषेक करें,इससे आर्थिक तंगी दूर होती है

सावन के महीने में वृश्चिक राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

वृश्चिक राशि के जातक ग्रहों के अशुभ प्रभाव से छुटकारा पाने के लिए घी से शंकर जी का अभिषेक करें.

सावन के महीने में धनु राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

धनु राशि के जातक वैवाहिक जीवन में सुख-शांति के लिए शहद से महादेव का अभिषेक करना चाहिए.

सावन के महीने में मकर राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

मकर राशि के जातक व्यापार या नौकरी में परेशानी आ रही है तो गंगाजल या इत्र शिव जी को चढ़ाएं. जल्द शुभ परिणाम मिलेंगे

सावन के महीने में कुम्भ राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

कुंभ राशि के जातक जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाने के लिए गंगाजल से भगवान भोलेनाथ का रुद्राभिषेक करना उत्तम माना गया है.

सावन के महीने में मीन राशि के जातक को शिवजी को प्रसन्ना करने के लिए कौनसा जलाभिषेक करना चाहिए

मीन राशि के जातक दूध में भांग और गन्ने का रस मिलाकर शिव का अभिषेक करें, इससे आय के नए अवसर प्राप्त होंगे.

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Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Owner at Gems For Everyone. Gemologist and Astrologer.

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