श्रावण मास माहात्म्य के पाठ एवं श्रवण का फल
ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! मैंने आपसे श्रावण मास का कुछ-कुछ माहात्म्य कहा है, इसके सम्पूर्ण माहात्म्य का वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता है. मेरी इस कल्याणी प्रिया सती ने दक्ष के यज्ञ में अपना शरीर दग्ध करके पुनः हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया. श्रावण मास में व्रत करने के कारण यह मुझे पुनः प्राप्त हुई इसीलिए श्रावण मुझे प्रियकर है. यह मास न अधिक शीतल होता है और ना ही अधिक उष्ण (गर्म) होता है. राजा को चाहिए कि श्रावण मास में श्रौताग्नि से निर्मित श्वेत भस्म से अपने संपूर्ण शरीर को उदधूलित करके जल से आर्द्र भस्म के द्वारा मस्तक, वक्षःस्थल, नाभि, दोनों बाहु, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, कंठ, सर और पीठ – इन बारह स्थानों में त्रिपुण्ड धारण करें।
“मानस्तोके.” मन्त्र से अथवा “सद्योजात.” आदि मन्त्र से अथवा षडाक्षर मन्त्र – ॐ नमः शिवाय – से भस्म के द्वारा शरीर को सुशोभित करें और शरीर में एक सौ आठ रुद्राक्ष धारण करें. कण्ठ में बत्तीस रुद्राक्ष, सर पर बाइस, दोनों कानों में बारह, दोनों हाथों में चौबीस, दोनों भुजाओं में आठ-आठ, ललाट पर एक और शिखा के अग्रभाग में एक रुद्राक्ष धारण करें. इस प्रकार से करके मेरा पूजन कर पंचाक्षर मन्त्र का जप करें।
हे विपेन्द्र ! श्रावण मास में जो ऐसा करता है वह मेरा ही स्वरुप है इसमें संदेह नहीं है. इस मास को मेरा अत्यंत प्रिय जानकर केशव की तथा मेरी पूजा करनी चाहिए. इस मास में मेरी अत्यंत प्रिय तिथि “कृष्णाष्टमी” (भारत के पश्चिमी प्रदेशों में युगादि तिथि के अनुसार मास का नामकरण होता है अतः श्रावण कृष्ण अष्टमी को भाद्रपद अष्टमी समझना चाहिए) पड़ती है, उस दिन भगवान् श्रीहरि देवकी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. हे सनत्कुमार ! यह मैंने आपको संक्षेप में बताया है, अब आप और क्या सुनना चाहते हैं !
सनत्कुमार बोले – हे पार्वतीपते ! आपने श्रावण मास का जो-जो कृत्य कहा, उन्हें सुनकर आनन्दसागर में निमग्न रहने के कारण और उनका वर्णन विस्तृत होने के कारण व्यवस्थित रूप से स्मृति नहीं बन पाई, अतः हे नाथ ! आप क्रम से सबको यथार्थ रूप से बताइए, सावधानी से सुनकर मैं भक्तिपूर्वक उन्हें धारण करूँगा।
ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! श्रावण मास की शुभ अनुक्रमणिका को आप सावधान होकर सुनिए. सर्वप्रथम शौनक का प्रश्न, तत्पश्चात सूतजी का उत्तर, श्रोता के गुण, आपके प्रश्न, श्रावण की व्युत्पत्ति, उसकी स्तुति, पुनः हे मुने ! आपका विस्तृत प्रश्न, इसके बाद नामकथन सहित आपके द्वारा की गई मेरी स्तुति, फिर क्रम से उद्देश्यपूर्वक मेरा उत्तर, पुनः आपका विशेष प्रश्न, उसके बाद नक्तव्रत की विधि, रुद्राभिषेक कथन, इसके बाद लक्षपूजा विधि, दीपदान, फिर किसी प्रिय वस्तु का परित्याग, पुनः रुद्राभिषेक करने तथा पंचामृत-ग्रहण करने से प्राप्त होने वाला फल, इसके बाद पृथ्वी पर शयन करने तथा मौनव्रत धारण करने का फल, तत्पश्चात मासोपवास में धारणा-पारणा की विधि, इसके बाद सोमाख्यान में लक्षरुद्रवर्ती विधि, पुनः कोटिलिंग-विधान, इसके बाद “अनौदन” नामक व्रत कहा गया है।
इसी व्रत में हविष्यान्न ग्रहण, पत्तल पर भोजन करना, शाकत्याग, भूमि पर शयन, प्रातःस्नान और दम तथा शम का वर्णन, उसके बाद स्फटिक आदि लिंगों में पूजा, जप का फल, उसके बाद प्रदक्षिणा, नमस्कार, वेदपरायण, पुरुषसूक्त की विधि, उसके बाद ग्रह यज्ञ की विधि, रवि-सोम-मंगल के व्रत का विस्तारपूर्वक वर्णन, पुनः बुध-गुरु का व्रत, इसके बाद शुक्रवार के दिन जीवन्तिका का व्रत, पुनः शनिवार को नृसिंह-शनि-वायुदेव और अश्वत्थ का पूजन – ये सब कहे गए हैं.
उसके बाद रोटक व्रत का माहात्म्य, औदुम्बर व्रत, स्वर्णगौरी व्रत, दूर्वागणपति व्रत, पंचमी तिथि में नाग व्रत, षष्ठी तिथि में सुपौदन व्रत, इसके बाद शीतला सप्तमी नामक व्रत, देवी का पवित्रारोपण, इसके बाद दुर्गाकुमारी की पूजा, आशा व्रत, उसके बाद दोनों एकादशियों का व्रत, पुनः श्रीहरि का पवित्रारोपण, पुनः त्रयोदशी तिथि को कामदेव की पूजा, उसके बाद शिवजी का पवित्रक धारण, पुनः उपाकर्म, उत्सर्जन तथा श्रवणा कर्म – इसका वर्णन किया गया है.
इसके बाद सर्पबलि, हयग्रीव-जन्मोत्सव, सभादीप, रक्षाबंधन, संकटनाशन व्रत, कृष्णजन्माष्टमी व्रत तथा उसकी कथा, पिठोर नामक व्रत, पोला नामक वृषव्रत,कुशग्रहण, नदियों का रजोधर्म, सिंह संक्रमण में गोप्रसव होने पर उसकी शान्ति, कर्क-सिंह संक्रमणकाल में तथा श्रावण मास में दान-स्नान-माहात्म्य, माहात्म्य-श्रवण, उसके बाद वाचकपूजा, इसके बाद अगस्त्य अर्घ्यविधि, फिर कर्मों तथा व्रतों के काल का निर्णय बताया गया है. जो श्रावण मास माहात्म्य का पाठ करता है अथवा इसका श्रवण करता है, वह इस मास में किये गए व्रतों का फल प्राप्त करता है।
हे सनत्कुमार ! आप इस शुभ अनुक्रम को अपने ह्रदय में धारण कीजिए. जो इस अध्याय को तथा श्रावण मास के माहात्म्य को सुनता है वह उस फल को प्राप्त करता है, जो फल सभी व्रतों का होता है. हे विप्रर्षे ! अधिक कहने से क्या लाभ है, श्रावण मास में जो विधान किया गया है, उनमें से किसी एक व्रत का भी करने वाला मुझे प्रिय है।
सूतजी बोले – हे शौनक ! शिवजी के अमृतमय इस उत्तम वचन का अपने कर्णपुट से पान करके सनत्कुमार आनंदित हुए और कृतकृत्य हो गए. श्रावण मास की स्तुति करते हुए तथा ह्रदय में शिवजी का स्मरण करते हुए वे देवर्षिश्रेष्ठ सनत्कुमार शंकर जी से आज्ञा लेकर चले गए. जिस किसी के समक्ष इस अत्यंत श्रेष्ठ रहस्य को प्रकाशित नहीं करना चाहिए. हे प्रभो ! आपकी योग्यता देखकर ही मैंने इसे आपसे कहा है।
इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराण के अंतर्गत ईश्वरसनत्कुमार संवाद में श्रावण मास माहात्म्य में “अनुक्रमणिकाकथन” नामक तीसवाँ अध्याय पूर्ण हुआ
श्रावण मास महात्म्य के अध्याय यह पढ़े:
- श्रावण मास महात्म्य – पहला अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – दूसरा अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – तीसरा अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – चौथा अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – पाँचवा अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – छठा अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – सातवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – आठवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – नवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – दसवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – ग्यारहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – बारहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – तेरहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – चौदहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – पन्द्रहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – सोलहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – सत्रहवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – अठारहवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – उन्नीसवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – बीसवां अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – इक्कीसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – बाईसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – तेइसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – चौबीसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – पच्चीसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – छब्बीसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – सत्ताईसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – अठ्ठाईसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – उनतीसवाँ अध्याय
- श्रावण मास महात्म्य – तीसवाँ अध्याय
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