सातुड़ी तीज – कजली तीज – बड़ी तीज

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सातुड़ी तीज कजली तीज बड़ी तीज

नीमड़ी माता की कहानी – सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि – सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि – 25 अगस्त – 2021 चन्द्रोदय: 20-43

रक्षा बंधन के दो दिन बाद भाद्रपद कृष्ण तृतीया को कजली तीज, बड़ी तीज या सातुड़ी तीज का त्यौहार व्यापक रूप से मनाया जाता है।

व्रत के पूर्व की तैयारी

बड़ी तीज के एक दिन पूर्व सिर धोकर , चारों हाथ पैरों के मेहंदी लगाई जाती है। सवा किलो या सवा पाव चने की दाल को सेक कर और पीस कर उसमें पिसी हुई शक्कर और घी मिला कर सातू तैयार किया जाता है। सातू जौ, गेहूं, चावल या चने आदि का भी मनाया जा सकता है।

पूजन सामग्री – एक छोटा सातू का लड्डू, नीम के पेड़ की एक छोटी टहनी, दीपक, केला, अमरुद, ककड़ी, दूध मिश्रित जल, कच्चा दूध, मोती की लड़, पूजा की थाली व जल का कलश।

पूजन की तैयारी – मिट्टी व गोबर से दीवार के सहारे एक छोटा सा ढेर बनाकर उसके बीच में नीम के पेड़ की टहनी रोप देते हैं। इस नीम की टहनी के चारों तरफ कच्चा दूध मिश्रित जल डाल देते हैं। इसके पास एक दीपक जलाकर रख देते हैं।

पूजा विधान – इस दिन पूरे दिन उपवास किया जाता है और शाम को नीमडी माता का पूजन किया जाता हैं सर्वप्रथम नीमडी माता के जल के छींटे , फिर रोली के छींटे दें और चाँवल चढ़ाएँ। इसके बाद पीछे दीवार पर रोली, मेहंदी और काजल की तेरह बिंदियाँ अपनी अंगुली से लगायें। फिर नीमडी माता के मोली चढ़ाएं, मेहंदी, काजल और वस्त्र भी चढ़ाएं। दीवार पर लगायी गयी बिंदियों पर भी मेहंदी की सहायता से लच्छा चिपका दें। फिर नीमडी माता के ऋतु फल दक्षिणा चढ़ाएं। पूजन करके कथा या कहानी सुननी चाहिये। रात को चाँद उगने पर उसकी तरफ जल के छींटे देवें फिर चाँदी की अंगूठी व गेहूं हाथ में लेकर जल से चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। ( इस दिन चँद्रमा के उगने का समय ऊपर दिया हुआ है।) इसके बाद व्रत खोला जाता है।

एक साहूकार था ,उसके सात बेटे थे। उसका सबसे छोटा बेटा पांगला (पाव से अपाहिज़) था। वह रोजाना एक वेश्या के पास जाता था। उसकी पत्नी बहुत पतिव्रता थी। खुद उसे कंधे पर बिठा कर वेश्या के यहाँ ले जाती थी। बहुत गरीब थी। जेठानियों के पास काम करके अपना गुजारा करती थी।

भाद्रपद के महीने में कजली तीज के दिन सभी ने तीज माता के व्रत और पूजा के लिए सातु बनाये।

छोटी बहु गरीब थी उसकी सास ने उसके लिए भी एक सातु का छोटा पिंडा बनाया। शाम को पूजा करके जैसे ही वो सत्तू पासने लगी उसका पति बोला मुझे वेश्या के यहाँ छोड़ कर आ

हर दिन की तरह उस दिन भी वह पति को कंधे पैर बैठा कर छोड़ने गयी , लेकिन वो बोलना भूल गया की तू जा।

वह बाहर ही उसका इंतजार करने लगी इतने में जोर से वर्षा आने लगी और बरसाती नदी में पानी बहने लगा । कुछ देर बाद नदी आवाज़ से

आवाज़ आई “आवतारी जावतारी दोना खोल के पी। पिव प्यारी होय” आवाज़ सुनकर उसने नदी की तरफ देखा तो दूध का दोना नदी में तैरता हुआ आता दिखाई दिया। उसने दोना उठाया और सात बार उसे पी कर दोने के चार टुकड़े किये और चारों दिशाओं में फेंक दिए।

उधर तीज माता की कृपा से उस वेश्या ने अपना सारा धन उसके पति को वापस देकर सदा के लिए वहाँ से चली गई।

पति ने सारा धन लेकर घर आकर पत्नी को आवाज़ दी ” दरवाज़ा खोल ” तो उसकी पत्नी ने कहा में दरवाज़ा नहीं खोलूँगी। तब उसने कहा कि अब में वापस नहीं जाऊंगा। अपन दोनों मिलकर सातु पासेगें।

लेकिन उसकी पत्नी को विश्वास नहीं हुआ, उसने कहा मुझे वचन दो वापस वेश्या के पास नहीं जाओगे। पति ने पत्नी को वचन दिया तो उसने दरवाज़ा खोला और देखा उसका पति गहनों और धन माल सहित खड़ा था। उसने सारे गहने कपड़े अपनी पत्नी को दे दिए। फिर दोनों ने बैठकर सातु पासा।

सुबह जब जेठानी के यहाँ काम करने नहीं गयी तो बच्चे बुलाने आये काकी चलो सारा काम पड़ा है। उसने कहा अब तो मुझ पर तीज माता की पूरी कृपा है अब मै काम करने नहीं आऊंगी। बच्चो ने जाकर माँ को बताया की आज से काकी काम करने नहीं आएगी उन पर तीज माता की

कृपा हुई है वह नए – नए कपडे गहने पहन कर बैठी है और काका जी भी घर पर बैठे है। सभी लोग बहुत खुश हुए।

हे! तीज माता! जैसे आप उस पर प्रसन्न हुई वैसे ही वैसी ही सब पर प्रसन्न होना, सब के दुःख दूर करना। बोलो तीज माता की जय!

सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि

चार बड़े पिंडे सातु के बनाएँ एक सासू का , एक मंदिर का , एक पति का , एक खुद का

सातु के सत्रह पिंडे सवा पाव -सवा पाव के बनाये ( सोलह सुहागन के लिए , एक सांख्या के लिए

सत्रह स्टील के प्याले मंगवा ले।

पिंडों को प्लेटो में रख कर,  कुमकुम टीका करे और सब पर लच्छा, सुपारी, सिक्का, गिट लगाये। चाहें तो साथ में बिंदी का एक पत्ता भी रख सकते है।

अब ये सातु पिंड वाली प्लेट एक एक करके सोलह सुहागनों को दे दें ।

एक बड़े पिंडे पर बेस (साड़ी ब्लाउज), सुहाग का सामान (काजल , बिंदी ,चूड़ी आदि ) और रूपये रख कर (51 ,101 इच्छानुसार) कलपना निकाले व सासु जी को दें और पाँव छू कर आशीर्वाद लें। ये कलपना या बयाना होता है। इसे सासू न हो तो ननद को या किसी बुजुर्ग स्त्री को जिसने आपके साथ पूजा की हो उसे दे सकते है। इसे सबसे पहले करके बाद में सोलह सुहागन को सातु दिया जा सकता है।

एक बड़ा पिंडा मंदिर में दे दें।
एक बड़ा पिंडा पति को झिला दें।
एक पिंडा खुद के लिए रख लें।

अब संखिया (देवर या घर का कोई भी लड़का जैसे भांजा , भतीजा जा आपसे उम्र में छोटा हो – सगे भाई के अलावा ) को टावेल या पेंट शर्ट व सातु वाली प्लेट , कुछ पैसे इच्छानुसार दे और कान में धीरे से बोले मेरी बड़ी तीज का उद्यापन की हामी भरना, मैने उद्यापन किया है मान लेना।

इसी तरह सातुड़ी तीज का उद्यापन सम्पन्न होता है।
है, तीज माता सबके जीवन में खुशहाली रखना। बोलो तीज माता की जय

नीमड़ी माता की कहानी

एक शहर में एक सेठ- सेठानी रहते थे। वह बहुत धनवान थे लेकिन उनके पुत्र नहीं था। सेठानी ने भादुड़ी बड़ी तीज (सातुड़ी तीज) का व्रत करके कहा कि “हे नीमड़ी माता मेरे बेटा हो जायेगा , तो मै आपको सवा मण का सातु चढ़ाऊगी”। माता की कृपा से सेठानी को नवें महीने लड़का हो गया। सेठानी ने सातु नहीं चढ़ाया। समय के साथ सेठानी को सात बेटे हो गए लेकिन सेठानी सातु चढ़ाना भूल गयी।

पहले बेटे का विवाह हो गया। सुहागरात के दिन सोया तो आधी रात को साँप ने आकर डस लिया और उसकी मृत्यु हो गयी। इसी तरह उसके छः बेटो की विवाह उपरान्त मृत्यु हो गयी। सातवें बेटे की सगाई आने लगी सेठ-सेठानी मना करने लगे तो गाँव वालो के बहुत कहने व समझाने पर सेठ-सेठानी बेटे की शादी के लिए तैयार हो गए। तब सेठानी ने कहा गाँव वाले नहीं मानते हैं तो इसकी सगाई दूर देश में करना।

सेठ जी सगाई करने के लिए घर से चले ओर बहुत दूर एक गाँव आये। वहाँ चार-पांच लड़कियाँ खेल रही थी जो मिटटी का घर बनाकर तोड़ रही थी। उनमे से एक लड़की ने कहा में अपना घर नहीं तोडूंगी। सेठ जी को वह लड़की समझदार लगी। खेलकर जब लड़की वापस अपने घर

जाने लगी तो सेठ जी भी पीछे – पीछे उसके घर चले गए। सेठजी ने लड़की के माता पिता से बात करके अपने लड़के की सगाई व विवाह की बात पक्की कर दी।

घर आकर विवाह की तैयारी करके बेटे की बारात लेकर गया और बेटे की शादी सम्पन्न करवा दी। इस तरह सातवे बेटे की शादी हो गयी।

बारात विदा हुई लंबा सफर होने के कारण लड़की की माँ ने लड़की से कहा कि मै यह सातु व सीख डाल रही हूं। रास्ते में कहीं पर शाम को नीमड़ी माता की पूजा करना, नीमड़ी माता की कहानी सुनना, सातु पास लेना व कलपना निकल कर सासु जी को दे देना।

बारात धूमधाम से निकली। रास्ते में बड़ी तीज का दिन आया ससुर जी ने बहु को खाने का कहा। बहु बोली आज मेरे तीज का उपवास है, शाम को नीमड़ी माता का पूजन करके नीमड़ी माता की कहानी सुनकर ही भोजन करुँगी। एक कुएं के पास नीमड़ी नजर आई तो सेठ जी ने गाड़ी

रोक दी। बहु नीमड़ी माता की पूजा करने लगी तो नीमड़ी माता पीछे हट गयी। बहु ने पूछा “हे माता आप पीछे क्यों हट रही हो।” इस पर माता ने कहा तेरी सास ने कहा था पहला पुत्र होने पर सातु चढ़ाऊंगी और सात बेटे होने के बाद, उनकी शादी हो जाने के बाद भी अभी तक

सातु नहीं चढ़ाया। वो भूल चुकी है।

बहु बोली हमारे परिवार की भूल को क्षमा कीजिये, सातु मैं चढ़ाऊंगी। कृपया मेरे सारे जेठ को वापस कर दो और मुझे पूजन करने दो। माता नववधू की भक्ति व श्रद्धा देखकर प्रसन्न हो गई। बहु ने नीमड़ी माता का पूजन किया ,और चाँद को अर्ध्य दिया, सातु पास लिया और कलपना

ससुर जी को दे दिया। प्रातः होने पर बारात अपने नगर लौट आई।

जैसे ही बहु से ससुराल में प्रवेश किया उसके छहों जेठ प्रकट हो गए। सभी बड़े खुश हुए उन सभी को गाजे बाजे से घर में लिया। सासु बहु के पैर पकड़ का धन्यवाद करने लगी तो बहु बोली सासु जी आप ये क्या करते हो, जो बोलवा करी है उसे याद कीजिये। सासु बोली “मुझे तो याद

नहीं तू ही बता दे” बहु बोली आपने नीमड़ी माता के सातु चढाने का बोला था सो पूरा नहीं किया।

तब सासू को याद आई। बारह महीने बाद जब कजली तीज आई, सभी ने मिल कर सवा सात मण का सातु तीज माता को चढ़ाया। श्रद्धा और भक्ति भाव से गाजे बाजे के साथ नीमड़ी माँ की पूजा की। बोलवा पूरी करी। हे भगवान उनके आनंद हुआ वैसा सबके होवे। खोटी की खरी, अधूरी की पूरी। बोलो नीमड़ी माता की जय सातुड़ी तीज का उद्यापन सातुड़ी तीज का व्रत महिलाएँ उत्साह के साथ हर वर्ष करती है। तीज के व्रत का उद्यापन करना रीती रिवाज का एक अभिन्न अंग है। शादी हो जाने के पश्चात् महिलाओं द्वारा इस व्रत का उद्यापन विधि पूर्वक किया जाता है। उद्यापन करने के बाद ही व्रत किया जाना सम्पूर्ण माना जाता है।

भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि जिसे सातुड़ी तीज, कजली तीज या बड़ी तीज कहते है उसकी उद्यापन विधि के बारे में संपूर्ण विवरण प्रस्तुत है। कुछ लोग उद्यापन को उजमन या उजवना भी कहते है। उद्यापन के बाद भी कुछ लोग तीज का व्रत पहले की तरह करते रहते है। कुछ लोग उद्यापन करने के सिर्फ अगले साल तीज का व्रत नहीं करते उसके बाद आने वाले सालो में अपनी सुविधा के अनुसार व्रत करते हैं।

सातुड़ी तीज के उद्यापन की विधि

चार बड़े पिंडे सातु के बनाएँ (एक सासू का, एक मंदिर का, एक पति का, एक खुद का)

सातु के सत्रह पिंडे सवा पाव – सवा पाव के बनाये (सोलह सुहागन के लिए, एक सांख्या के लिए

सत्रह स्टील के प्याले (प्लेट) मंगवा ले।

पिंडों को प्लेटो में रख कर, कुमकुम टीका करे और सब पर लच्छा, सुपारी, सिक्का, गिट लगाये। चाहें तो साथ में बिंदी का एक पत्ता भी रख सकते है।

अब ये सातु पिंड वाली प्लेट एक एक करके सोलह सुहागनों को दे दें।

एक बड़े पिंडे पर बेस (साड़ी ब्लाउज), सुहाग का सामान (काजल , बिंदी ,चूड़ी आदि) और रूपये रख कर (51 ,101 इच्छानुसार) कलपना निकाले व सासु जी को दें और पाँव छू कर आशीर्वाद लें। ये कलपना या बयाना होता है। इसे सासू न हो तो ननद को या किसी बुजुर्ग स्त्री को जिसने आपके साथ पूजा की हो उसे दे सकते है। इसे सबसे पहले करके बाद में सोलह सुहागन को सातु दिया जा सकता है।

एक बड़ा पिंडा मंदिर में दे दें।
एक बड़ा पिंडा पति को झिला दें।
एक पिंडा खुद के लिए रख लें।

अब संखिया (देवर या घर का कोई भी लड़का जैसे भांजा , भतीजा जा आपसे उम्र में छोटा हो –सगे भाई के अलावा) को टावेल या पेंट शर्ट व सातु वाली प्लेट , कुछ पैसे इच्छानुसार दे और कान में धीरे से बोले मेरी बड़ी तीज का उद्यापन की हामी भरना, मैने उद्यापन किया है मान लेना।

इसी तरह सातुड़ी तीज का उद्यापन सम्पन्न होता है।
है तीज माता सबके जीवन में खुशहाली रखना।
बोलो तीज माता की जय।

पार्वती जी की आरती

जय पार्वती माता जय पार्वती माता|
ब्रह्मा सनातन देवी शुभफल की दाता|
अरिकुलापदम बिनासनी जय सेवक्त्राता,
जगजीवन जगदंबा हरिहर गुणगाता|
सिंह को बाहन साजे कुण्डल हैं साथा,
देबबंधु जस गावत नृत्य करा ताथा|
सतयुगरूपशील अतिसुन्दर नामसतीकहलाता,
हेमाचल घर जन्मी सखियन संग राता|
शुम्भ निशुम्भ विदारे हेमाचल स्थाता,
सहस्त्र भुजा धरिके चक्र लियो हाथा|
सृष्टिरूप तुही है जननी शिव संगरंग राता|
नन्दी भृंगी बीन लही है हाथन मद माता|
देवन अरज करत तब चित को लाता,
गावन दे दे ताली मन में रंगराता|
श्री प्रताप आरती मैया की जो कोई गाता|
सदा सुखी नित रहता सुख सम्पति पाता|
है तीज माता सबके जीवन में खुशहाली रखना।
बोलो तीज माता की जय।

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Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Gemologist, Astrologer. Owner at Gems For Everyone and Koti Devi Devta.

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