देव गुरु बृहस्पति की आराधना उनकी पूजा से जीवन में सर्वोच्च ज्ञान, व्यवहारिकता, अनुभव, धर्म परायणता, तत्व की समझ, सांस्कृतिक विषयों का ज्ञान, विपुल धन-धान्य तथा उत्तम संतान का सुख प्राप्त होता है। हम सभी के जीवन में गुरु का बहुत महत्व है, जब जीवन में घनघोर अंधकार छा जाता है तब प्रकाश की एक किरण ही उस अंधकार को छाँट देती है उसी तरह ग्रह देव बृहस्पति का प्रभाव भी है जो हमारे जीवन में आई किसी भी विपत्ति का समूल नाश कर देता है, ज्योतिष में गुरु को सर्वाधिक भावों का कारकत्व मिला है जैसे धन और ज्ञान भाव, संतान और बुद्धि का भाव, धर्म और भाग्य का भाव, कर्म और सम्मान का भाव, लाभ और इच्छापूर्ति का भाव तथा मोक्ष का भाव। हमारी जिन्दगी यह सब कितना महत्वपूर्ण है यह कहने की जरूरत नहीं। सभी नव ग्रहों में गुरु को ही सर्वाधिक शुभ ग्रह कहा गया है, उनकी दृष्टि को अमृत दृष्टि कहा गया है।
कुंडली में गुरु अगर शुभ और बलवान हैं तो उपरोक्त सभी फल जातक को मिलता है। पर अगर संयोग बस गुरु अशुभ, पीड़ित व निर्बल हुए तो जातक दिन-हिन बनकर रह जाता है। ऐसे में गुरु की कृपा प्राप्ति जातक के लिए कितनी आवश्यक हो जाती है यह कहने की जरूरत नहीं।
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जानिये:
गुरु देव की प्रसन्नता हेतु कौन से मंत्र का जप-पूजा करें?
गुरु देव की प्रसन्नता हेतु कौन से दान करें?
कुंडली में गुरु की शुभ-अशुभ स्थिति में कौन से उपाय करें जिनसे उनके शुभ फल प्राप्त कर सकते है?
निचे दिए गए किसी भी मंत्र द्वारा गुरु ग्रह का शुभ फल प्राप्त किया जा सकता है, इनमें से एक अथवा कई उपाय एक साथ किए जा सकते है यह अपनी श्रद्धा पर निर्भर करता है। यह सभी आजमाए हुए फलित उपाय है।
बृहस्पति ग्रह के संपूर्ण मंत्र एवं अचूक उपाय
बृहस्पति ग्रह का पौराणिक मंत्र
ॐ देवानां च ऋषीणां च गुरूं काञ्चनसंन्निभम्।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम्।
बृहस्पति ग्रह का गायत्री मंत्र
ॐ अंगिरसाय विद्महे दण्डायुधाय धीमहि तन्नो जीवः प्रचोदयात् ।।
बृहस्पति ग्रह का वैदिक मंत्र
ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अहद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यदीदयच्छवस ऋत प्रजात। तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।।
बृहस्पति ग्रह का बीज मंत्र
ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः
जप संख्या: 19000
समय: शुक्ल पक्ष में गुरु की होरा में
बृहस्पति ग्रह का तांत्रिक मंत्र
ॐ बृं बृहस्पतये नमः
बृहस्पति ग्रह का पूजा मंत्र
ॐ बृहम बृहस्पतये नमःयह मंत्र बोलते हुए गुरु प्रतिमा अथवा गुरु यंत्र का पूजन करें।
बृहस्पति ग्रह का दान
ग्रह देव बृहस्पति का दिन होता है गुरुवार और इनका रंग होता है पिला । गुरु के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चने की दाल, केले, पीले वस्त्र, पीले चावल, केशर, पुखराज, शहद, पीले फूल-फल, पिली मिठाइयां, हल्दी, कांसे के बर्तन, घोडा, घी, बेसन के लड्डू, कोई भी धर्म ग्रंथ, सोना दान करना सुखकारी होता है। यह दान गुरुवार को और सुबह के समय देना चाहिए, दान किसी ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है।
ध्यान दे – कर्ज और उधार लेकर कभी दान न दें तथा जो व्यक्ति श्रम करने के योग्य होकर भी भीख मांगते हैं ऐसे लोगों को भूलकर भी दान नहीं देना चाहिए।
बृहस्पति ग्रह का व्रत
जब भी गुरुवार का व्रत करना हो तो सर्वप्रथम किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार से शुरू करें, सबसे पहले स्नान आदि से निवृत होकर किसी पीले रंग के आसन पर पूर्व दिशा की तरफ मुंह कर के बैठ जाए, ग्रह देव बृहस्पति का ध्यान करें उनका यंत्र सामने रख लें तो अति उत्तम, अब अपने दाहिने हाथ में शुद्ध जल ले लें और उनसे अपनी मनोकामना कहकर संकल्प करें कि हे ग्रह देव बृहस्पति मैं अपनी यह मनोकामना लेकर आप की इतने गुरुवार का व्रत करने का संकल्प करता हूँ। आप मेंरे मनोरथ पूर्ण करें और मुझे आशीर्वाद दें, यह कह कर हाथ में लिया हुआ जल धरती पर गिरा दें, ऐसा संकल्प सिर्फ प्रथम गुरुवार को करना है। तत्पश्चात श्रद्धा भाव से गुरु देव का पंचोपचार पूजन करें व ऊपर लिखित किसी भी मंत्र का 1, 3, 5, 7, 9, 11 जितना भी संभव हो उतनी माला जप करें। दिन में फलाहार कर सकते हैं। संध्या समय भोजन कर सकते हैं भोजन में मीठी खीर, लड्डू, गुड-चीनी, गुडपट्टी का सेवन कर सकते हैं। इस प्रकार करने से देव गुरु बृहस्पति की कृपा व उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
जितना संकल्प किया था उतना व्रत पूर्ण होने पर व्रत का पारण करना चाहिए, किसी योग्य ब्राह्मण को घर पर बुलाकर भोजन करना चाहिए व गुरु की वस्तु दान करनी चाहिए।
बृहस्पति ग्रह के कुंडली में शुभ होकर कमजोर होने पर
- गुरुवार को केसर का तिलक लगाने से बृहस्पति मजबूत हो जाता है।
- अगर 27 गुरुवार लगातार तिलक लगाया जाता है तो बृहस्पति का शुभ प्रभाव बढ़ जाता है।
- पुखराज नग सोने की अंगूठी में सीधे हाथ की तरजनी उंगली में धारण करने से बृहस्पति का प्रभाव बढ़ जाता है।
- पीले कलर के कपडे धारण करने से भी गुरु का प्रभाव बढ़ जाता है।
- नित्य कुछ समय कोई भी जो आप को पसंद हो, धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए।
- घर में हलके पीले कलर के पर्दे व तकिये प्रयोग में लाने चाहिए * ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए।
- रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
- घर पर जगह हो तो पीले फूल के पौधे रोपने चाहिए और नित्य उसमें पानी डालना चाहिए ।
बृहस्पति ग्रह के कुंडली में नीच अथवा अशुभ होने की स्थिति में
- गुरु, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अतः इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
- केला का सेवन और सोने वाले कमरे में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अतः इनसे बचना चाहिए।
- ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए।
- रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
- कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाइयां गरीबों में बांटनी चाहिए ।
- पक्षियों विशेषकर कौओं को पिली मिठाई देना चाहिए।
- व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समय पर उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेना चाहिए।
- बादाम व् नारियल पीले कपडे में लपेटकर बहते पानी में कम से कम 7 गुरुवार बहाना चाहिए।
- ऐसे व्यक्ति को मंदिर में या किसी धर्म स्थल पर निशुल्क सेवा करनी चाहिए तथा कोई धर्म ग्रन्थ किसी बुजुर्ग ब्राह्मण को देना चाहिए ।
- गुरुवार के दिन मंदिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
- गुरुवार के दिन आटे के लोई में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
- घर में वर्ष में एक बार अखंड रामायण का पाठ करवाना चाहिये।
- गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु को पीले वस्त्र एवं फूल के बर्तन दान करना चाहिये
नोट- इनमें से कोई एक अथवा कई उपाय श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए। तथा गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे उपायों हेतु गुरुवार का दिन, शुक्ल पक्ष, गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
इनके अलावा गुरु ग्रह से संबंधित कैसी भी परेशानी हो तो निम्नलिखित स्तोत्र का नित्य पाठ करें अगर नित्य संभव न हो तो किसी भी शुक्ल पक्ष के गुरुवार से प्रारम्भ कर के हर गुरुवार को नियम पूर्वक इसका पाठ करें, स्कन्द पुराण में वर्णित इस पाठ का बहुत ही महत्व है, इससे जीवन में ग्रह देव बुध से संबंधित उपरोक्त सभी फल प्राप्त होते हैं।
विधि- सर्व प्रथम स्नान आदि से निवृत होकर पीले आसन पे बैठकर ग्रह देव बृहस्पति का ध्यान करें व श्रद्धा पूर्वक पंचोपचार (धुप, गंध / चन्दन, दीप, पुष्प, नैवेद्य इससे किसी भी देवता की पूजा को पंचोपचार पूजन कहते हैं) पूजन करें फिर अपने दाहिने हाथ में जल लेकर विनियोग करें अर्थात निचे लिखे मंत्र को पढ़ें।
(विनियोग का बहुत महत्व है। जैसे- किसी भी मंत्र या स्तोत्र या छंद को जपने, पढ़ने का उद्देश्य क्या है, उसको खोजने वाले, रचना करने वाले ऋषि कौन है आदि, हम विनियोग द्वारा उस मंत्र आदि को अपने कल्याण के लिए उपयोग कर रहे हैं और उसके रचयिता का आभार कर रहे हैं)
विनियोग मंत्र.
अस्य श्री बृहस्पतिस्तोत्रस्य गृत्समद ऋषि: अनुष्टुप छन्द: बृहस्पतिर्देवता, बृहस्पति प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
गुरुर्बृहस्पतिर्जीव: सुराचार्यो विदां वरः।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा ॥1॥
सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुड्मलद्युतिः ॥2॥
लोकपूज्यो लोकगुरुः नीतिज्ञो नीतिकारकः।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवेद्यः पितामहः ॥3॥
भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत् ।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः ॥4॥
जीवेद्दर्षशतं मत्यो पापं नश्यति।
यः पूजयेत् गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः ॥5॥
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम् ।
ब्रह्मणान् भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेत् गुरोः ॥6॥
॥ इति श्री स्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
।।इति शुभम्।।
बृहस्पतिवार की आरती
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
बृहस्पति देव की स्तुति
जयति जयति जय श्री गुरुदेवा,
करूं सदा तुम्हरी प्रभु सेवा ।
देवाचार्य तुम देव गुरु ज्ञानी,
इन्द्र पुरोहित विद्यादानी ।
वाचस्पति बागीश उदारा,
जीव बृहस्पति नाम तुम्हारा ।
विद्या सिन्धु अंगिरा नामा,
करहुं सकल विधि पूरण कामा ।
इस तरह आप बृहस्पति देव के मंत्र, व्रत और पूजा करके बृहस्पति ग्रह को प्रसन्न कर सकते है. कुंडली में दूसरे ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए उनके मंत्र, व्रत और पूजा की जानकारी जानने के लिए हमारी ग्रह देव मंत्र एवं उपाय की सूची को देखिये
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