दीपावली लक्ष्मी पूजा – 2021

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दीपावली लक्ष्मी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा गुरुवार, नवम्बर 4, 2021 पर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 18:14 से 20:09
अवधि – 01 घण्टा 55 मिनट्स
प्रदोष काल – 17:36 से 20:09
वृषभ काल – 18:14 से 20:13
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 04, 2021 को 06:03 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 05, 2021 को 02:44 बजे
लक्ष्मी पूजा के दिन का पञ्चाङ्गलक्ष्मी पूजा के दिन का चौघड़िया मुहूर्त

अन्य शहरों के नाम लक्ष्मी पूजा मुहूर्त

शहरों के नामपूजा मुहूर्त
नई दिल्ली18:09 से 20:04
पुणे18:39 से 20:32
चेन्नई18:21 से 20:10
जयपुर18:17 से 20:14
हैदराबाद18:22 से 20:14
गुरुग्राम18:10 से 20:05
चण्डीगढ़18:07 से 20:01
मुम्बई18:42 से 20:35
कोलकाता17:34 से 19:31
अहमदाबाद18:37 से 20:33
बेंगलूरु18:32 से 20:21
नोएडा18:08 से 20:04

निशिता काल मुहूर्त ,लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 23:32 से 00:23, नवम्बर 05
अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स
निशिता काल – 23:32 से 00:23, नवम्बर 05
सिंह लग्न – 00:40 से 02:50, नवम्बर 05
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न के बिना
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 04, 2021 को 06:03 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – नवम्बर 05, 2021 को 02:44 बजे
लक्ष्मी पूजा के दिन का पञ्चाङ्गलक्ष्मी पूजा के दिन का चौघड़िया मुहूर्त
चौघड़िया पूजा मुहूर्त ,दीवाली लक्ष्मी पूजा के लिये शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त (शुभ) – 06:18 से 07:43
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 10:32 से 14:47
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 16:11 से 17:36
सायाह्न मुहूर्त (अमृत, चर) – 17:36 से 20:47
रात्रि मुहूर्त (लाभ) – 23:57 से 01:33, नवम्बर 05

  1. वृश्चिक लग्न – यह दिवाली के दिन की सुबह का समय होता है. वृश्चिक लग्न में मंदिर, हॉस्पिटल, होटल्स, स्कूल, कॉलेज में पूजा होती है. राजनैतिक, टीवी फ़िल्मी कलाकार वृश्चिक लग्न में ही लक्ष्मी पूजा करते है.
  2. कुम्भ लग्न – यह दिवाली के दिन दोपहर का समय होता है. कुम्भ लग्न में वे लोग पूजा करते है, जो बीमार होते है, जिन पर शनि की दशा ख़राब चल रही होती है, जिनको व्यापार में बड़ी हानि होती है.
  3. वृषभ लग्न – यह दिवाली के दिन शाम का समय होता है. यह लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय होता है.
  4. सिम्हा लग्न – यह दिवाली की मध्य रात्रि का समय होता है. संत, तांत्रिक लोग इस दौरान लक्ष्मी पूजा करते है.

दिवाली का त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. रावण से दस दिन के युद्ध के बाद श्रीराम जी जब अयोध्या वापिस आते हैं तब उस दिन कार्तिक माह की अमावस्या थी, उस दिन घर-घर में दिए जलाए गए थे तब से इस त्योहार को दीवाली के रुप में मनाया जाने लगा और समय के साथ और भी बहुत सी बातें इस त्यौहार के साथ जुड़ती चली गई.

दीपावली का प्रमुख पर्व लक्ष्मी पूजन होता है। इस दिन रात्रि को जागरण करके धन की देवी लक्ष्मी माता का पूजन विधिपूर्वक करना चाहिए एवं घर के प्रत्येक स्थान को स्वच्छ करके वहां दीपक लगाना चाहिए जिससे घर में लक्ष्मी का वास एवं दरिद्रता का नाश होता है।

लक्ष्मी अर्थात धन की देवी महालक्ष्मी विष्णु पत्नी का पूजन कार्तिक अमावस्या को सारे भारत के सभी वर्गों में समान रूप से पूजा जाता है। इस बार दीपावली को अमावस्या क्षय तिथि में मनाई जाएगी।

इन्द्रकृतं लक्ष्मीस्तोत्रं

जानिए की कैसे करें लक्ष्मी-पूजन

सर्व प्रथम लक्ष्मीजी के पूजन में स्फटिक का श्रीयंत्र ईशान कोण में बनी वेदी पर लाल रंग के कपडे़ पर विराजित करें साथ ही लक्ष्मीजी की सुंदर प्रतिमा रखें।
इसके बाद चावल-गेहूं की नौ-नौ ढेरी बनाकर नवग्रहों का सामान बिछाकर शुद्ध घी का दीप प्रज्ज्वलित कर धूप बत्ती जलाकर सुगंधित इत्रादि से चर्चित कर गंध पुष्पादि नैवद्य चढा़कर इस मंत्र को बोले – गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः गुरुर साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः॥
इस मंत्र पश्चात इस मंत्र का जाप करें- ब्रह्‌मा मुरारि-त्रिपुरांतकारी भानु शशि भूमि सुता बुधश्च। गुरुश्च, शुक्र, शनि राहु, केतवे सर्वे ग्रह शांति करा भवंतु।
इसके बाद आसन के नीचे कुछ मुद्रा रखकर ऊपर सुखासन में बैठकर सिर पर रूमाल या टोपी रखकर, शुद्ध चित्त मन से

निम्न में से एक मंत्र चुनकर जितना हो सके उतना जाप करना चाहिए।

ॐ श्री ह्रीं कमले कमलालये। प्रसीद् प्रसीद् श्री ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नम:।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं हं सोः जगत प्रसूत्ये नमः

शास्त्रों में कहा गया है कि इन मंत्रों के श्रद्धापूर्वक जाप से व्यक्ति आर्थिक व भौतिक क्षेत्र में उच्चतम शिखर पर पहुंचने में समर्थ हो सकता है। दरिद्रता-निवारण, व्यापार उन्नति तथा आर्थिक उन्नति के लिए इस मंत्र का प्रयोग श्रेष्ठ.

दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का विशेष विधान है। इस दिन संध्या और रात्रि के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, विघ्नहर्ता भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक अमावस्या की अंधेरी रात में महालक्ष्मी स्वयं भूलोक पर आती हैं और हर घर में विचरण करती हैं। इस दौरान जो घर हर प्रकार से स्वच्छ और प्रकाशवान हो, वहां वे अंश रूप में ठहर जाती हैं इसलिए दिवाली पर साफ-सफाई करके विधि विधान से पूजन करने से माता महालक्ष्मी की विशेष कृपा होती है। लक्ष्मी पूजा के साथ-साथ कुबेर पूजा भी की जाती है।

पूजन के दौरान इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  1. दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन से पहले घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में वातावरण की शुद्धि और पवित्रता के लिए गंगाजल का छिड़काव करें। साथ ही घर के द्वार पर रंगोली और दीयों की एक शृंखला बनाएं।
  2. पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
  3. माता लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति पर तिलक लगाएं और दीपक जलाकर जल, मौली, चावल, फल, गुड़, हल्दी, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें और माता महालक्ष्मी की स्तुति करें।
  4. इसके साथ देवी सरस्वती, मां काली, भगवान विष्णु और कुबेर देव की भी विधि विधान से पूजा करें।
  5. महालक्ष्मी पूजन पूरे परिवार को एकत्रित होकर करना चाहिए।
  6. महालक्ष्मी पूजन के बाद तिजोरी, बहीखाते और व्यापारिक उपकरण की पूजा करें।
  7. पूजन के बाद श्रद्धा अनुसार ज़रुरतमंद लोगों को मिठाई और दक्षिणा दें।
    जानिए दिवाली पर क्या करें?
  8. कार्तिक अमावस्या यानि दीपावली के दिन प्रात:काल शरीर पर तेल की मालिश के बाद स्नान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की हानि नहीं होती है।
  9. दिवाली के दिन वृद्धजन और बच्चों को छोड़कर् अन्य व्यक्तियों को भोजन नहीं करना चाहिए। शाम को महालक्ष्मी पूजन के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
  10. दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें। प्रदोष काल के समय हाथ में उल्का धारण कर पितरों को मार्ग दिखाएं। यहां उल्का से तात्पर्य है कि दीपक जलाकर या अन्य माध्यम से अग्नि की रोशनी में पितरों को मार्ग दिखायें। ऐसा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  11. दिवाली से पहले मध्य रात्रि को स्त्री-पुरुषों को गीत, भजन और घर में उत्सव मनाना चाहिए। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में व्याप्त दरिद्रता दूर होती है।

दीपाली मनाये जाने के कारण दिवाली की पौराणिक कथा

रामायण – दीवाली की उत्पत्ति के कई कारण हैं जो मानते हैं और विश्वास करते हैं। दीवाली मनाने के पीछे सबसे प्रसिद्ध कारण महान हिंदू महाकाव्य में रामायण है। रामायण के अनुसार, अयोध्या के राजकुमार राम को अपने देश से चैदह वर्ष तक चले जाने के लिए और अपने पिता, राजा दशरथ द्वारा जंगल में रहने के लिए नियत किया गया था। इसलिए, राम अपनी पत्नी ‘सीता’ और वफादार भाई ‘लक्ष्मण’ के साथ वनवास में चले गये थे।

जब राक्षस रावण ने सीता का अपहरण कर लिया और उसे अपने राज्य में ले गया, राम ने उसके खिलाफ युद्ध लड़ा और रावण को मार डाला। ऐसा कहा जाता है कि राम ने सीता को बचाया और चैदह वर्ष बाद अयोध्या लौट आये। उनकी वापसी पर, अयोध्या के लोग अपने प्रिय राजकुमार को फिर से देखने के लिए बहुत खुश थे। अयोध्या में राम की वापसी का जश्न मनाने के लिए, घरों को (छोटे-छोटे लैंप) रोशन किया गया, पटाखे फोड़े गए और अयोध्या शहर को अत्यधिक सजाया गया। इस दिन को दीवाली परंपरा की शुरूआत माना जाता है। हर साल, भगवान राम के घर वापसी के त्यौहार दीवाली को रोशनी, पटाखे, आतिशबाजी और उच्च भावनाओं के साथ मनाया जाता है।

महाभारत – दीवाली के त्यौहार से संबंधित एक और प्रसिद्ध कहानी हिंदू महाकाव्य, महाभारत में वर्णित है। यह हिंदू महाकाव्य हमें बताता है कि कैसे पांच शाही भाई, पांडवों ने अपने अन्य भाई कौरवों से जुऐ के खेल में हार का सामना किया। नियमों के अनुसार, पांडवों को 13 साल के वनवास में चले जाने के लिए कहा गया था। तेरह वर्षों से वनवास के बाद, वे अपने जन्मस्थान ‘हस्तिनापुर’ में कार्तिक अमावस्या (इसे कार्तिक महीने के नए चन्द्र दिवस के रूप में जाना जाता है) के दिन वापस आ गये। पांचों पांडव, उनकी मां और उनकी पत्नी द्रौपदी बहुत दयालु, भरोसेमंद, कोमल और अपने तरीके से देखभाल करने वाले थे। हस्तिनापुर में लौटने के इस हर्षित अवसर को मनाने के लिए, आम नागरिकों द्वारा सभी स्थानों पर दीये जलाकर राज्य को रोशन किया गया। माना जाता है कि इस परंपरा को दीवाली के माध्यम से जीवित रखा गया है, जैसा कि कई लोगों द्वारा माना जाता है और पांडवों के घर वापसी के रूप में याद किया जाता है।

जैन दीवाली. जैन समुदाय के लिए, दीवाली भगवान वर्धमान महावीर के ज्ञान के रूप में मनाया जाता है। वर्धमान महावीर जैन के चैथे और अंतिम तीर्थंकर और आधुनिक जैन धर्म के संस्थापक पिता हैं। भगवान महावीर का जन्म जैनियों के दीवाली के त्यौहार को मनाने के लिए एक और कारण है।
सिख दीवाली।

दीवाली सिखों के लिए एक विशेष महत्व रखती है क्योंकि यह दीवाली का दिन था जब तीसरे सिख गुरु अमर दास ने एक शुभ अवसर के रूप में रोशनी के त्यौहार को प्रस्तावित किया जब सभी सिख गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इकट्ठा होंगे। 1619 में, यह दीवाली का दिन था जब उनके छठे धार्मिक गुरू, गुरु हरगोविंद सिंह जी को ग्वालियर किले में मुगल सम्राट जहांगीर द्वारा रिहा किया गया था। उन्हें 52 हिंदू राजाओं के साथ कारावास से रिहा कर दिया गया था जिसका उन्होंने अनुरोध किया था। यह दीवाली का शुभ अवसर था, जब अमृतसर में स्वर्ण मंदिर की नींव का पत्थर 1577 में रखा गया था।

महालक्ष्म्यष्टक स्तोत ।

देवराज इन्द्र द्वारा रचित लक्ष्मी जी के इस महालक्ष्म्यष्टक स्तोत्र का जो जातक सदा भक्ति युक्त होकर प्रतिदिन पाठ करता है। वह सारी सिद्धियों और राज्यवैभव को प्राप्त कर सकता है। जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बडे-बडे पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है। जो प्रतिदिन तीन काल तक पाठ करता है उसके सभी शत्रुओं का नाश होता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥1॥
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥2॥
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥3॥
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्ति मुक्ति प्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥4॥
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्ति महेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्षि्म नमोस्तु ते॥5॥
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे।
महापापहरे देवि महालक्षि्म नमोस्तु ते॥6॥
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि।
परमेशि जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥7॥
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते।
जगत्सि्थते जगन्मातर्महालक्षि्म नमोस्तु ते॥8॥
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्ति मान्नर:।
सर्वसिद्धिमवापनेति राज्यं प्रापनेति सर्वदा॥9॥
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्यसमन्वित:॥10॥
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा॥11॥

अर्थात श्री पीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाएं। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शङ्ख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥1॥

गरुड पर आरूढ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्षि्म! तुम्हें प्रणाम है॥2॥

सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥3॥

सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवति महालक्षि्म! तुम्हें सदा प्रणाम है॥4॥

हे देवि! हे आदि-अन्त-रहित आदिशक्ते ! हे महेश्वरि! हे योग से प्रकट हुई भगवति महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥5॥

हे देवि! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बडे-बडे पापों का नाश करने वाली हो। हे देवि महालक्षि्म! तुम्हें नमस्कार है॥6॥

हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवि! हे परमेश्वरि! हे जगदम्ब! हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥7॥

हे देवि तुम श्वेत वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के आभूषणों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्षि्म! तुम्हें मेरा प्रणाम है॥8॥

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Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Gemologist, Astrologer. Owner at Gems For Everyone and Koti Devi Devta.

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