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Sheetla Mata Poojan

शीतला सप्‍तमी चैत्र माह कृष्ण पक्ष अष्टमी को शीतलाष्टमी का व्रत रखा जाता है। इसमें भगवती स्वरूप शीतलादेवी को बासी या शीतल भोजन का भोग लगाया जाता है। इसलिए यह व्रत बसोरा या बासीडा के नाम से भी जाना जाता है।
पुराणों में माता शीतला के रूप का जो वर्णन है, उसके मुताबिक उनका वाहन गधा बताया गया। उनके हाथ में कलश, झाडू होते हैं। वह नग्र स्वरुपा, नीम के पत्ते पहने हुए और सिर पर सूप सजाए हुए होती है।
इस व्रत और रोग के संबंध में धार्मिक दर्शन यह है कि पुराणों में माता के सात मुख्य रूप बताए गए हैं। ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा। धर्मावलंबी इनमें से भाव के अनुसार किसी माता को सौम्य एवं किसी को उग्र भाव मानते हैं। इस रोग से कौमारी, वाराही और चामुण्डा को प्रभाव भयानक माना जाता है। जिसके संयम और लापरवाही की स्थिति में रोगी नेत्र, जीभ के साथ ही शरीर से हमेशा के लिए असहाय हो जाता है।
स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:
वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।
गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तक वाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी झाडू होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला माता प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतला की फुंसियों के चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
जय ठण्‍डी माता , शीतला माता, सेजल माता तेरी जय हो ।

शीतला माता पूजन
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Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Gemologist, Astrologer. Owner at Gems For Everyone and Koti Devi Devta.

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