शीतला माता की पूजा

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शीतला माता की पूजा और कहानी
होली के बाद शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इसे बसौड़ा पर्व भी कहा जाता है इस दिन माता शीतला को बासी खाने का भोग लगाया जाता है. और इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलता है. मां शीतला की पूजा से शरीर निरोगी होता है और चेचक जैसे संक्रामक रोग में भी मां भक्तों की रक्षा करती हैं शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी पूजा एकमात्र ऐसा व्रत ये एकमात्र ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन चढ़ाया और खाया जाता है. इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलता और भोजन एक दिन पहले बन जाता है.मां शीतला की पूजा-अर्चना में स्‍वच्‍छता का पूरा ख्‍याल रखना चाहिए. इस दिन प्रात: काल उठ कर स्नान करना चाहिए. फिर व्रत का संकल्प लें और पूरे विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिए। शीतला माता का स्वरुप शास्त्रों के अनुसार शीतला माता गर्दभ यानी गधे की सवारी करती हैं. उन्होंने अपने एक हाथ में कलश पकड़ा हुआ है और दूसरे हाथ में झाडू है. ऐसा माना जाता है कि इस कलश में लगभग सभी देवी देवताओं का वास रहता हैजो भक्त सच्चे मन से मां शीतला की पूजा-अर्चना और यह व्रत करता है उसे सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है. माना जाता है कि मां शीतला का व्रत करने से शरीर निरोगी होता है. रोगों से भी मां अपने भक्तों की रक्षा करती हैं दरिद्रता दूर होती है ऐसी मान्‍यता है कि झाड़ू से दरिद्रता दूर होती है और कलश में धन कुबेर का वास होता है. माता शीतला अग्नि तत्व की विरोधी हैं

शीतला माता के व्रत और पूजन

शीतला सप्तमी शनिवारअप्रैल 3 – 2021 को
शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्त – 06:05 से 18:29
अवधि – 12 घण्टे 24 मिनट्स
शीतला अष्टमी रविवार – अप्रैल 4 – 2021 को
सप्तमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 03 – 2021 को 05-58 बजे
सप्तमी तिथि समाप्त – अप्रैल 04 – 2021 को 04 -12 बजे
शीतला अष्टमी रविवार, अप्रैल 4 – 2021 को
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्त – 06-04 से 18-29
अवधि – 12 घण्टे 25 मिनट्स
शीतला सप्तमी शनिवार, अप्रैल 3 – 2021 को
अष्टमी तिथि प्रारम्भ – अप्रैल 04 – 2021 को 04 -12 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त – अप्रैल 05 – 2021 को 02-59 बजे

ये होली सम्पन्न होने के अगले सप्ताह में बाद करते हैं। प्रायः शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होती है, लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार अथवा गुरुवार के दिन ही की जाती है।

दोहा

जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान।
होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान ॥
घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार।
शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार ॥
माता शीतला स्तुतिमन्त्र
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता ।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः ।।

श्री शीतला चालीसा

चौपाई
जय जय श्री शीतला भवानी । जय जग जननि सकल गुणधानी ॥
गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती । पूरन शरन चंद्रसा साजती ॥
अग्नि सी जलत शरीरा । शीतल करत हरत सब पीड़ा ॥
मात शीतला तव शुभनामा । सबके काहे आवही कामा ॥
शोक हरी शंकरी भवानी । बाल प्राण रक्षी सुखदानी ॥
सूचि बार्जनी कलश कर राजै । मस्तक तेज सूर्य सम साजै ॥
चौसट योगिन संग दे दावै । पीड़ा ताल मृदंग बजावै ॥
नंदिनाथ भय रो चिकरावै । सहस शेष शिर पार ना पावै ॥
धन्य धन्य भात्री महारानी । सुर नर मुनी सब सुयश बधानी ॥
ज्वाला रूप महाबल कारी । दैत्य एक अग्नि भारी ॥
हर हर प्रविशत कोई दान क्षत । रोग रूप धरी बालक भक्षक ॥
हाहाकार मचो जग भारी । सत्यो ना जब कोई संकट कारी ॥
तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा । कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा ॥
अग्नि हि पकड़ी करी लीन्हो । मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो ॥
बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा । मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा ॥
अब नही मातु काहू गृह जै हो । जह अपवित्र वही घर रहि हो ॥
पूजन पाठ मातु जब करी है । भय आनंद सकल दुःख हरी है ॥
अब भगतन शीतल भय जै हे । अग्नि भय घोर न सै हे ॥
श्री शीतल ही बचे कल्याना । बचन सत्य भाषे भगवाना ॥
कलश शीतलाका करवावै । वृजसे विधीवत पाठ करावै ॥
अग्नि भय गृह गृह भाई । भजे तेरी सह यही उपाई ॥
तुमही शीतला जगकी माता । तुमही पिता जग के सुखदाता ॥
तुमही जगका अतिसुख सेवी । नमो नमामी शीतले देवी ॥
नमो सूर्य करवी दुख हरणी । नमो नमो जग तारिणी धरणी ॥
नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी । दुख दारिद्रा निस निखंदिनी ॥
श्री शीतला शेखला बहला । गुणकी गुणकी मातृ मंगला ॥
मात शीतला तुम धनुधारी । शोभित पंचनाम असवारी ॥
राघव खर बैसाख सुनंदन । कर भग दुरवा कंत निकंदन ॥
सुनी रत संग शीतला माई । चाही सकल सुख दूर धुराई ॥
कलका गन गंगा किछु होई । जाकर मंत्र ना औषधी कोई ॥
हेत मातजी का आराधन । और नही है कोई साधन ॥
निश्चय मातु शरण जो आवै । निर्भय ईप्सित सो फल पावै ॥
कोढी निर्मल काया धारे । अंधा कृत नित दृष्टी विहारे ॥
बंधा नारी पुत्रको पावे । जन्म दरिद्र धनी हो जावे ॥
सुंदरदास नाम गुण गावत । लक्ष्य मूलको छंद बनावत ॥
या दे कोई करे यदी शंका । जग दे मैंय्या काही डंका ॥
कहत राम सुंदर प्रभुदासा । तट प्रयागसे पूरब पासा ॥
ग्राम तिवारी पूर मम बासा । प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा ॥
अब विलंब भय मोही पुकारत । मातृ कृपाकी बाट निहारत ॥
बड़ा द्वार सब आस लगाई । अब सुधि लेत शीतला माई ॥
चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय ।
सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय ॥
बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू ।
जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू ॥
इति श्री शीतला चालीसा समाप्त

श्री शीतलाष्टक स्तोत्र

ॐ अस्य श्रीशीतला स्तोत्रस्य महादेव ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः शीतली देवता लक्ष्मी बीजम् भवानी शक्तिः सर्व अग्नि निवृत्तये जपे विनियोगः
ईश्वर उवाच।।
वन्दे अहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगम्बराम् ।।
मार्जनी कलशोपेतां शूर्पालं कृत मस्तकाम्।१।
वन्देअहं शीतलां देवीं सर्व रोग भयापहाम्।।
यामासाद्य निवर्तेत विस्फोटक भयं महत् ।२।
शीतले शीतले चेति यो ब्रूयाद्दारपीड़ितः।।
विस्फोटकभयं घोरं क्षिप्रं तस्य प्रणश्यति।३।
यस्त्वामुदक मध्ये तु धृत्वा पूजयते नरः ।।
अग्नि भयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।४।
शीतले ज्वर दग्धस्य पूतिगन्धयुतस्य च ।।
प्रनष्टचक्षुषः पुसस्त्वामाहुर्जीवनौषधम् ।५।
शीतले तनुजां रोगानृणां हरसि दुस्त्यजान् ।
अग्नि विदीर्णानां त्वमेका अमृत वर्षिणी।६।
गलगंडग्रहा रोगा ये चान्ये दारुणा नृणाम् ।।
त्वदनु ध्यान मात्रेण शीतले यान्ति संक्षयम् ।७।
न मन्त्रा नौषधं तस्य पापरोगस्य विद्यते ।।
त्वामेकां शीतले धात्रीं नान्यां पश्यामि देवताम्।८।
मृणालतन्तु सद्दशीं नाभिहृन्मध्य संस्थिताम् ।।
यस्त्वां संचिन्तये द्देवि तस्य मृत्युर्न जायते ।९।
अष्टकं शीतला देव्या यो नरः प्रपठेत्सदा ।।
अग्नि भयं घोरं गृहे तस्य न जायते ।१०।
श्रोतव्यं पठितव्यं च श्रद्धा भक्ति समन्वितैः ।।
उपसर्ग विनाशाय परं स्वस्त्ययनं महत्।११।
शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।१२।
रासभो गर्दभश्चैव खरो वैशाख नन्दनः ।।
शीतला वाहनश्चैव दूर्वाकन्दनिकृन्तनः ।१३।
एतानि खर नामानि शीतलाग्रे तु यः पठेत् ।।
तस्य गेहे शिशूनां च शीतला रूङ् न जायते।१४।
शीतला अष्टकमेवेदं न देयं यस्य कस्यचित् ।।
दातव्यं च सदा तस्मै श्रद्धा भक्ति युताय वै।१५।
श्रीस्कन्दपुराणे शीतलाअष्टक स्तोत्रं ।।

माता शीतला जी की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता
आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता |
रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,
ऋद्धिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता |
विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,
वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता |
इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,
सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता |
घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,
करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता |
ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,
भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता |
जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता,
सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता |
रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,
कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता |
बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,
ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता |
शीतल करती जननी तुही है जग त्राता,
उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता |
दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,
भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता |

जय हो श्री शीतला माता की सभी भक्तों के परिवारों को माता कुशल मंगल रखें।
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Gyanchand Bundiwal
Gyanchand Bundiwal

Gemologist, Astrologer. Owner at Gems For Everyone and Koti Devi Devta.

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